Bijoyotsav today in Dulour:बाबू कुंवर सिंह ने किए थे अंग्रेजों के दांत खट्टे
खबरे आपकी कृष्ण कुमार आरा जगदीशपुर के जमींदार व 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा बाबू कुंवर सिंह अपने पिता साहेबजादा सिंह की पहली संतान थे। वे बचपन से ही जोशीले और साहसी थे। पिता के जगदीशपुर छोड़कर चले जाने से उनकी पढ़ाई लिखाई नहीं हो सकी। कुंवर सिंह परिवार से दूर अलग रहते थे। जितौर के जंगल में उन्होंने अपने लिए फूस का बंगला बनवाया था। जहां वे रहकर शिकार तथा आमोद-प्रमोद में समय बिताया करते थे। उनका विवाह देवमूंगा (गया) के जमींदार राजा फतह नारायण सिंह के पुत्री से हुआ था। उनका दलभंजन सिंह नाम का एक ही संतान थी। जिसकी उनके जीवनकाल में ही मृत्यु हो गई। दलभंजन सिंह का एक बेटा था। जिसका नाम वीरभंजन सिंह था। वह अपने बूढ़े पितामह के साथ रीवा तक गया। बाद में बांदा में उनकी मृत्यु हो गई।
Bijoyotsav today in Dulour:जंगल में थे गुप्त और प्रशस्त मार्ग
बाबू कुंवर सिंह के राजगद्दी पर बैठने के साथ जमींदारी में शांति, समृद्धि, चटक-मटक और ऐश्वर्य का नया युग आरंभ हुआ। जगदीशपुर नगर का विस्तार हुआ। नए बाजार कायम किए गए। कुएं और तालाब खुदवाए गए। आरा के महादेवा बाजार की नींव डाली गई, जो आज भी उनके नाम बाबू बाजार से प्रसिद्ध है। कुंवर सिंह को जंगलों से विशेष प्रेम था। जंगलों में पेड़ लगाने में उनकी बड़ी दिलचस्पी थी। जगदीशपुर के यही जंगल जिन्हें बाबू कुंवर सिंह ने इतनी सावधानी से समुन्नत किया था। सन 1857-58 के स्वाधीनता संग्राम के समय उनके साथियों के पनाह के लिए स्वर्ग और अंग्रेजी फौज के लिए अजेय बाधा साबित हुए। इन जंगल में गुप्त और प्रशस्त मार्ग रहे थे। जिसकी जानकारी कुंवर सिंह के अनुयायियों के एक छोटे दल को ही थी। इन रास्तों से होकर वे जंगलों में एक कोने से दूसरे कोने तक चुपचाप चले जाते थे। उनका पीछा करने वाले का सारा प्रयास व्यर्थ हो जाता था। कभी-कभी तो यह विद्रोही सिपाही अपने छिपे स्थान से अचानक हमला कर अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा देते थे।
कुंवर सिंह के जगदीशपुर के गढ़ को नया रूप दिया गया। गढ़ के पश्चिम में तालाब बनवाया गया। विरासत में मिली जमींदारी को अधिक बढ़ाया गया। शाहाबाद जिले के डुमरांव के बाद उनकी जमींदारी सबसे बड़ी थी। 1857 में बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उनकी फौज द्वारा आरा में अंग्रेजों की छावनी घेर ली, जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसरों की व्याकुलता बढ़ गई। कैप्टन डनवर के नेतृत्व में 500 सैनिकों का दल 29-30 जुलाई 1857 को आरा पहुंचा। जहां डनवर और उनके अनेक ब्रिटिश अफसर विद्रोहियों की गोली के शिकार हुए। इसके बाद कुंवर सिंह ने शाहाबाद जिले को अपने कब्जे में ले कर लिया।
कुंवर सिंह ने आरा में दो थाने पूर्वी एवं पश्चिमी कायम किया। गुलाम याहिया खान को इन दोनों थानों का मजिस्ट्रेट बना दिया। शहर के मिल्की मोहल्ले के शेख मोहम्मद अजीमुद्दीन पूर्वी थाना के जमादार बनाए गए। वहीं दीवानेख अफजल के 2 पुत्र तुराव अली और खादिम अली को कोतवाल नियुक्त किया गया। इसी क्रम में बंगाल आर्टिलरी सेना का मेजर बिसेन आयर गंगा के रास्ते स्ट्रीमर से इलाहाबाद जा रहा था। यात्रा के दौरान उसे अपने देशवासियों की संकटपूर्ण स्थिति का पता चला। वह फौरन आरा के लिए चल पड़ा, दो-तीन अगस्त 1857 को बीबीगंज में कुंवर सिंह की सेना के साथ उसकी घमासान लड़ाई हुई। वहां से आरा पहुंच अंग्रेजी छावनी का उद्धार किया। इसके बाद कुंवर सिंह अपने घर चले गए। आरा में 48 घंटे के भीतर लोगों का हथियार जमा करवा लिया। जिन भारतीय अफसरों ने बाबू कुंवर सिंह के अधिकार को स्वीकार किया था। 12 अगस्त को दुलौर के समीप विद्रोहियों और अंग्रेजों के बीच जमकर लड़ाई हुई।