Child-Centric Education: विभिन्न ज्ञानानुशासन क्षेत्रों से स्कूल विषय का आर्विभाव एवं ज्ञान की उन्नति विषय पर आयोजित हुआ सेमिनार
- हाइलाइट्स: Child-Centric Education
- दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ समापन
आरा शहर के बामपाली स्थित मां आरण्य देवी बीएड कॉलेज में (आर्यभटृ ज्ञान विश्वविद्यालय पटना से संबद्व) में विभिन्न ज्ञानानुशासन क्षेत्रों से स्कूल विषय का आर्विभाव एवं ज्ञान की उन्नति विषय पर चल रहे दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन हुआ। समापन सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध शिक्षाविद व आर्यभटृ ज्ञान विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एजुकेशनल ट्रेनिंग एंड रिसर्च के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी ने की।
अपने सम्बोधन में श्री त्रिपाठी ने बहुविषयक ज्ञान के विभिन्न बिन्दुओं को व्यवहारिक जीवन में प्रयोग एवं उनसे सीखने के तरीको पर प्रकाश डाला। व्यक्ति का जीवन आवश्यकताओं एवं तकनीक के समन्वय से निर्धारित होता है। श्री त्रिपाठी ने उपस्थित सभी श्रोताओं एवं प्रशिक्षुओं से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों का अध्ययन करने का सुक्षाव दिया, जिससे शिक्षा की बारिकीयों को एक नए सिरे से पड़ताल की जा सके।
डॉ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह सोदिया (एसोसिएट प्रोफेसर मिस्कोल्क विश्वविद्यालय, हंगरी (यूरोप)) ने डिजिटल युग में शिक्षा के लिए नवीन दृष्टिकोण एसटीईएम सिद्धांतों एआई और प्रौद्योगिकी की उपयोगिता विषय पर रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया। उन्होने एसटीईएम सिद्धांत के विभिन्न आयामों पर विस्तार से प्रकाश डाला।
मुख्य वक्ता डॉ. भगवान दीन एसोसिएट प्रो. ए.के.एस. विश्वविद्यालय, सतना ने विद्यालयी विषयों का उद्भव, उद्भव का मूल्य उद्देश्य, मूल अनुशासन का विषय की प्रकृति से व्यवस्थित करते हुए ज्ञान को उन्नत बनाने के लिए बहुविषयी शिक्षा के समझ की ओर व्यापक बहुकोणीय सोच को समग्र शिक्षा से समन्वित किया।
कार्यक्रम संरक्षक राजेश राजमणि ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा की प्राथमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा का प्राचीन स्वरुप को नयी शिक्षा नीति में क्या नवीन ढांचा दिया गया है। शिक्षा का निर्धारण बच्चों के मनोविज्ञान के अनुसार होना चाहिए। आज के परिवेश में बाल केंद्रित शिक्षा अति आवश्यक है। विद्यालय का वातावरण ऐसा हो कि बच्चे स्वतः विद्यालय की ओर आकर्षित हो। यही नई शिक्षा निति का लक्ष्य भी है।
श्री राजमणि ने प्रतिभागियों के बीच अपने संबोधन के अंत में एक प्रश्नवाचक चिन्ह के रूप में कहा की इमानदारी एक नीति है या कुछ और। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में निस्कर्षात्मक संबोधन में संयोजक डॉ. महेन्द्र सिंह ने अवगत कराया कि इस सम्मलेन से बहुअनुशानात्मक शिक्षा के संयुक्त तौर तरीकों, मापदंडों, चुनौतियों, अवसरों की चर्चा से शिक्षार्थी के ज्ञान उन्नयन के लिए जो जानकारियाँ प्राप्त हुई है, उससे पाठ्यक्रम की संरचना, विषयवस्तु के विद्यार्थियों के बीच प्रस्तुतीकरण एवं ज्ञान विज्ञान को जीवन की विभिन स्तिथियों पर आधारित करने से सुखद व सार्थक परिणाम आयेंगे।
दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के संयोजक एवं प्राचार्य माँ आरण्य देवी बी.एड कॉलेज, बामपाली, आरा डॉ. महेंद्र सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। वही कार्यक्रम के व्यवस्थापक समिति के सदस्यों चंद्रेश कुमार, अनिल कुमार पाण्डेय, कृष्ण कुमार सिंह, प्रशांत कुमार राय, शैलेश कुमार सिंह, अनिल कुमार सिंह एवं दिलीप कुमार सिंह इत्यादि को अच्छे प्रबंधन के लिए साधुवाद दिया तथा प्रशिक्षु स्वयंसेवकों हर्षित, सिद्धार्थ, ममता, प्रियंका, पूर्णिमा, शीतल, अशिलेश, लालजी, सुमन प्रिया, श्रुति, लक्ष्मी, गुडिया, स्नेह, स्वेता, अमीषा, रुक्मणि, आकांशा, विष्णु शुक्ला, रितिक इत्यादि का विशेष आभार प्रकट किया एवं आशीर्वाद स्वरुप कहा की सामाजिक सहभागिता से, कला से जीवन जीने के ढंग से विभिन्न व्यवस्थाओं से ही आदर्शों का निर्माण एवं ज्ञान की प्राप्ति स्वतः होती है।