Friday, March 29, 2024
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स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है शाहपुर का प्राचीन कुंडवा शिवमंदिर

Kundwa Shiv Temple of Shahpur: बिना ईट का प्रयोग पत्थरो से बना प्राचीन कुंडवा शिवमंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना

  • हजारो वर्ष पुराना हैं कुंडवा शिवमंदिर स्थापित शिवलिंग है चपटा, मुख्य द्वार है पश्चिम की ओर
  • स्थानीय लोगों के अनुसार असुरों का राजा वाणासुर ने था बनवाया, हवन कुंड से निकला था स्थापित शिवलिंग

Bihar/Ara/shahpur: धार्मिक आस्था का केंद्र क्षेत्र का कुंडवा शिव मंदिर बनावट एवं स्थापत्य कला, पुरातत्वविदो एवं लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग गोलाकार ना होकर चिपटा हुआ है। साथ ही मंदिर का मुख्य द्वार पूरब की ओर ना होकर पश्चिम की दिशा की ओर खुलता है,जो इसे दूसरे अन्य शिव मंदिरों से अलग श्रेणी में रखता है।

डॉ. शैलेंद्र कुमार
Holi Anand
Dr. Prabhat Prakash
Vishvaraj Hospital, Arrah
डॉ. शैलेंद्र कुमार
Holi Anand
Dr. Prabhat Prakash
Vishvaraj Hospital, Arrah

बिना ईट का प्रयोग किया बड़े-बड़े शिलाखंडों को तराश कर उन्हें एक दूसरे से परस्पर जोड़कर बनाया गया। यह विशाल प्राचीन शिव मंदिर पुरातन कारीगरो की कारीगरी व मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां तत्कालीन शिल्पकार को समृद्ध शिल्पकारी को बयान करता है।

विशालकाय पत्थरों को जोड़कर बना मंदिर 30 फीट ऊंची गुम्बद वाला है। जिसका गर्भ गृह करीब छह फीट चौड़ा है। जिसके ठीक बीचोबीच चिपटा हुआ शिवलिंग स्थापित है। मंदिर कब बना इसका और किसने बनवाया इसका कोई लिखित प्रमाण नही है।

बताया जाता है कि मंदिर को असुरो के राजा वाणासुर द्वारा बनवाया गया था। मंदिर के सामने बना तालाब एक हवन कुंड है जो वर्तमान में तालाब के शक्ल में विद्यमान है। शिवमंदिर के ठीक पश्चिम इसी प्रकार का एक और छोटा मंदिर है, जो इसी तरह से शिलाखंडों को काटकर और उन्हें परस्पर एक-दूसरे से जोड़कर निर्माण किया गया है।

Kundwa Shiv Temple of Shahpur: आरा-बक्सर मुख्य मार्ग पर शाहपुर व बिलौटी के बीच है शिव मंदिर

यह प्राचीन शिव मंदिर भोजपुर जिले के मुख्यालय आरा से करीब 28 किलोमीटर उत्तर पश्चिम आरा-बक्सर मुख्य मार्ग पर शाहपुर व बिलौटी के बीच निर्माणाधीन फोरलेन के बिल्कुल सटे हुए उत्तर दिशा में यह प्राचीन शिव मंदिर (Kundwa Shiv Temple of Shahpur) अवस्थित है।

लोकगाथा उनकी किदवंतियो के अनुसार मंदिर का निर्माण महाभारत कालीन असुरों का राजा बाणासुर द्वारा कराया गया। मान्यता है कि असुरो का राजा बाणासुर तब गंगा के मुख्यधारा के समीप इसी स्थान पर तपस्या करता था। इसी दौरान उसे इस स्थान पर यज्ञ कराने की अनुभूति हुई। जिसके बाद उसने यज्ञ के लिए हवन कुंड खुदवाने का कार्य प्रारंभ करवाया। हवन कुंड की खुदाई के दौरान मजदूरों के फावड़े पत्थरों से टकराया और रक्तश्राव हो गया। देखने पर दोनों तरफ से कटा हुआ चिपटा शिवलिंग उत्पन्न हुआ। जिसे इस मंदिर में स्थापित कराया गया। मंदिर समिति के सदस्य मिंटू तिवारी ने बताया कि फागुन एवं सावन के महीने में महाशिवरात्रि के दिन यहां मेला लगता है। यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।

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aman singh
sambhavna

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