Pandit Bideshwari Dubey Jayanti: संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहे प्रख्यात मजदूर नेता बिंदेश्वरी दुबे की जयंती बिहिया में 14 जनवरी को राजकीय समारोह आयोजित कर मनाई गई ।
- हाइलाइट :-
- पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केन्द्रीय मंत्री पंडित बिन्देश्वरी दूबे की 101वीं जयंती समारोह
- पंडित बिन्देश्वरी दूबे ने कोयला मजदूरों को उन्होंने उनके पसीने की कीमत बताई
Pandit Bideshwari Dubey Jayanti खबरे आपकी
बिहिया/आरा: संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहे प्रख्यात मजदूर नेता बिंदेश्वरी दुबे की जयंती बिहिया में 14 जनवरी को राजकीय समारोह आयोजित कर मनाई गई।कांग्रेस और इंटक के दिग्गज स्व. बिदेश्वरी दुबे की पहचान एक मजदूर नेता के रूप में रही है। उन्होंने एक ओर कोयला श्रमिको को सुख की छाया प्रदान की तो दूसरी ओर कोयला श्रमिको की शक्ति से सत्ता की राजनीति के सफर की शुरुआत की। कोयलांचल की मजदूर राजनीति से संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री और केंद्र में श्रम और कानून मंत्री के पद को सुशोभित किया।
उन्होंने वर्तमान झारखंड के बेरमो कोयलांचल को मुख्य कार्य क्षेत्र बनाया तथा वहां के जन जीवन में इस कदर रच बस गए कि वहां के लोग उन्हें आदर से बाबा कहा करते थे। उन्होंने कोयलांचल के मजदूरों के लिए इतना काम किया कि ट्रेड यूनियन के राजनीति के मिथक बन गए। कोयला मजदूरों को उन्होंने उनके पसीने की कीमत बताई।
Pandit Bideshwari Dubey Jayanti: 14 जनवरी 1923 को बिहिया प्रखंड के महुआँव गांव में जन्में बिंदेश्वरी दुबे के पिता का नाम शिव नरेश दुबे था। वे चार भाइयों में दूसरे स्थान पर थे। 1940-50 के दसक में वे बेरमो आए।1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। 1955-56 में वहां अंग्रेजों की कंपनी में टर्नर की नौकरी की। इंटक नेता के रूप में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कोयला मंत्री कुमार मंगलम तक कोयला मजदूरों आवाज पहुंचा कर 1971 में कोयला खदान के राष्ट्रीयकरण में अहम भूमिका निभाई।
आज भी जब उद्योग जगत में मजदूर यूनियन,श्रमिको की मांग,आदर्शवादी चरित्र और परिपाटी की बात आती है तो से. दुबे जी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वे छात्र जीवन में हीं महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। स्व. दुबे जी बिहार के मुख्यमंत्री,केंद्रीय कानून एवं न्याय तथा श्रम और रोजगार मंत्री,इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष,बिहार कांग्रेस अध्यक्ष के अलावा संयुक्त बिहार के विभिन्न सरकारों में शिक्षा,परिवहन,स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे।1980 से 84 तक गिरिडीह से सातवीं लोक सभा के सदस्य,1988 से 93 तक राज्य सभा के सदस्य तथा छः बार विधान सभा के सदस्य रहे। वे 1985 में संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री बने और 1988 तक रहे।
उनका कार्यकाल डकैतों,माफियाओं और असामाजिक तत्वों के खात्मे के लिए चलाए गए अपरेशन ब्लैक पैंथर,अपरेशन सिद्धार्थ तथा माफिया ट्रायल शुरू कराने के लिए जाना जाता है। तब वे अपना कर्म क्षेत्र छोड़ अपने गृह क्षेत्र शाहपुर से विधान सभा पहुंचे थे। चुनाव प्रचार के दौरान जब लोग उनसे पूछते कि बाबा अउर पहिले काहे ना अइनी तो उनका जवाब होता कि हाथी घूमे गावे गांव जेकर हाथी ओकरे नाम। क्षेत्र में लहर थी। लोगों का मानना था कि वे विधायक के लिए नहीं मुख्यमंत्री को वोट कर रहे है। वे रिकार्ड मत से जीत दर्ज की थी।
लोग उस काल को आज भी भोजपुर के विकास का स्वर्णिम काल मानते है। उनके मुख्यमंत्री रहते भोजपुर में विकास की नई इबारत लिखी गई। सड़को का जाल बिछा,स्वास्थ्य उपकेंद्रों को अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में अपग्रेड किया गया। स्कूल भवन बने,बिहिया को नवोदय विद्यालय मिला। शाहपुर के भरौली नदी में पुल,ब्रह्मपुर के निमेज में नदी में पुल बनाकर उन्होंने दियारा क्षेत्र के लोगों का राह आसान किया। उनके कार्यकाल में क्षेत्र के नहरों में टेल एंड तक पानी पहुंचा।बिजली के तो वे पर्याय के रूप में जाने गए। बिजली के किल्लत के बीच लोगों को बीस से बाइस घंटे तक बिजली मिली।राज्य सभा का सदस्य रहते 20 जनवरी 1993 को उनका निधन हो गया था।