Tuesday, March 18, 2025
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संत परंपरा में मठ के मठाधीश की अनुमति अनिवार्य होती है: योगी अजय नाथ

Yogi Ajay Nath: यूपी से आये संत योगी अजय नाथ जी महाराज को देखने के लिए शाहपुर के छोटी मठिया भक्तों की भीड़ से पूरा भरा रहा।

Yogi Ajay Nath: यूपी से आये संत योगी अजय नाथ जी महाराज को देखने के लिए शाहपुर के छोटी मठिया भक्तों की भीड़ से पूरा भरा रहा।

  • हाइलाइट : Yogi Ajay Nath
    • शाहपुर के छोटी मठिया में उपस्थित ग्रामीणों ने उन्हें मठ में रुकने का आग्रह किया
    • आग्रह को अस्वीकार करते हुए योगी जी ने एक महत्वपूर्ण धार्मिक सिद्धांत का कराया संज्ञान

आरा: शाहपुर के छोटी मठिया में रविवार को एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसमे यूपी से आये युवा संत योगी अजय नाथ जी महाराज को देखने के लिए कार्यक्रम स्थल छोटी मठिया भक्तों की भीड़ से पूरा भरा रहा। जिनके प्रति सभी की श्रद्धा और आस्था स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हो रही थी।

शाहपुर यज्ञ समिति
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इधर, जगदीशपुर ज्ञानवृक्ष आश्रम के महंत श्री रामजीवन दास जी महाराज, शाहपुर बड़ी मठिया के महंत श्री उद्धवदास जी महाराज के साथ जैसे ही संत योगी अजय नाथ जी ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, संत की सरल जीवनशैली ने ग्रामीणों को उनके प्रति अधिक आकर्षित किया। वहां उपस्थित ग्रामीणों ने उन्हें मठ में रुकने का आग्रह किया। ग्रामीणों का आग्रह भावनात्मक और विनम्र था। परंतु योगी अजय नाथ जी महाराज ने श्रद्धालुओं के आग्रह को अस्वीकार करते हुए एक महत्वपूर्ण धार्मिक सिद्धांत का संज्ञान कराया।

Mathematics Coching shahpur
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संत परंपरा में मठ के मठाधीश की अनुमति अनिवार्य होती है: योगी अजय नाथ

उन्होंने स्पष्ट किया कि संत परंपरा में किसी भी मठ के मठाधीश की अनुमति अनिवार्य होती है। योगी जी ने कहा, “जब तक इस मठ के महंत महादेव गिरी जी महाराज आज्ञा नहीं देते, हम यहां नहीं रहेंगे।” यह उत्तर केवल एक साधारण बहाना नहीं था, बल्कि संत परंपरा के सम्मान और अनुशासन का प्रतीक था। उन्होंने बताया कि संत वास्तव में एक मार्गदर्शक होते हैं, जो धर्म और आचरण के नियमों को अनुशासित तरीके से मानते हैं।

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परंपरा का पालन कितना आवश्यक है। योगी अजय नाथ जी महाराज की यह सोच इस बात का प्रमाण है कि संत समुदाय में नियमों और अनुशासन का कितना महत्त्व होता है। इससे न केवल श्रद्धालुओं को, बल्कि सभी उपस्थित लोगों को यह सीखने को मिला कि सच्चे संत केवल अपने नाम और प्रसिद्धि के लिए नहीं, बल्कि धर्म और परंपरा के प्रति जिम्मेदार होते हैं।

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