आरा: तबले की थाप पर घुंघरूओ की झंकार का अद्भुत नजारा दिखा। डिजिटल समारोह में लय और ताल के इस संगम के गवाह बने कई कलाकार और श्रोता। अवसर था लीजेंड बक्शी कुलदीप नारायण सिन्हा मेमोरीयल कल्चरल सोसायटी द्वारा आयोजित 106 वां छह दिवसीय श्री कृष्ण जन्मोत्सव संगीत समारोह सह झूलनोत्सव के तृतीय निशा का ।
संगीत में कृष्ण पर आधारित बंदिशों का प्राचीन प्रचलन: डॉ. लावण्या
उद्घाटन संगीत एवं नाट्य विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (दरभंगा) की विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. लावण्या कीर्त सिंह (काव्या) ने किया। लावण्या ने अपने संबोधन में कहा कि शास्त्रीय संगीत में ज्यादातर बंदिशें कृष्ण पर आधारित हैं और इसे गाने का प्रचलन अति प्राचीन है।
श्री कृष्ण नृत्य कला में पारंगत थे। कृष्ण का एक नाम नटवर है और उत्तर भारत का शास्त्रीय नृत्य कथक पहले नटवरी नृत्य के नाम से प्रचलित था। भारतीय संगीत नृत्य काफी हद तक कृष्ण और राधा तक केँद्रित है।
कार्यक्रम में सोनम कुमारी ने कथक नृत्य की शुरुआत कृष्ण वंदना से की। इसके बाद तीन ताल में उपज, उठान, ठाट, आमद, लड़ी, नटवरी टुकड़ा, परन, तिहाई, तलवार की गत तथा ठुमरी ” छोड़ो छोड़ो बिहारी नारी देखें सगरी ” पर भाव प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया।
गुरू बक्शी विकास के तबले की थाप पर शिष्या सोनम के घुंघरुओं की झंकार ने अद्भुत समां बांधा। हारमोनियम पर रौशन कुमार ने सुरीला संगत किया। संचालन अमित कुमार और धन्यवाद ज्ञापन हर्षिता विक्रम ने किया।
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