Decision on Bihar municipal elections:जीते व् हारे प्रत्याशियों की उम्मीद एवं निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी
Bihar/Ara khabreApki दिलीप ओझा/शाहपुर: शहरी निकाय चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट की आज फैसले की घड़ी है। क्षेत्र में शहरी निकाय के चुनाव लड़ने वाले जीते और हारे दोनों ही प्रत्याशियों की नजरें दिल्ली की शीर्ष अदालत पर लगी हुई। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आता है! क्या फैसले का असर पड़ता है। शहरी निकाय के सभी अभ्यर्थियों के बीच ऊहापोह का माहौल बना हुआ है।
हारने वाला प्रत्याशी सुप्रीम कोर्ट को अपना मान कर बिहार सरकार द्वारा कराए गए चुनाव को अवैध करा देना चाहता है तो दूसरी तरफ चुनावी समर में मैदान मार चुके अभ्यर्थी चुनाव पर पर कोर्ट की रोक की प्रक्रिया को गलत की संज्ञा देते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट द्वारा शहरी निकाय चुनाव को यदि ओबीसी आरक्षण के आधार पर रद्द किया जाता है तो कुछ लोग का कहना है कि अब देखते हैं बीस को क्या होता है! कोर्ट का फैसला आने तक चुनाव लड़ने वाले अभ्यर्थी या उनके समर्थक दोनों ही भारी बेचैनी का माहौल है।
Decision on Bihar municipal elections: विदित हो कि बिहार शहरी निकाय चुनाव के तहत हाई कोर्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की ट्रिपल टेस्ट के मद्देनजर रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद राज्य सरकार द्वारा एक आयोग का गठन कर एनजीओ के माध्यम से नगर पंचायतों के बीच पिछड़ों का एक सर्वे कराया गया था। जिसके आधार पर बिहार में शहरी निकाय के चुनाव संपन्न कराए गए थे।
परंतु इसी बीच कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट में गए एवं अपना पक्ष रखते हुए कहा कि कि सुप्रीम कोर्ट के 2010 के फैसले के अनुसार ही ओबीसी के आरक्षण के बाद चुनाव करना चाहिए था। क्योंकि बिना आरक्षण के चुनाव होने के कारण कई जातियों को इसमें अपनी सहभागिता मिलने से वंचित हो जाता है। यह संविधान में उसके प्रावधानों को उक्त जातियों के लिए वंचित करने वाला निर्देश माना जा रहा है।