karja shahpur: भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड के करजा गांव निवासी मुरारी प्रसाद के इकलौते पुत्र त्रिपुरारी संन्यासी के रूप में अंतिम भिक्षाटन के लिए अपने परिवार व रिश्तेदार से मिलकर भावुक हुआ।
- हाइलाइट :-
- हाथ में सारंगी लिए 27 वर्षों के बाद घर लौटा त्रिपुरारी उर्फ गौतम
- अंतिम भिक्षाटन के बाद त्रिपुरारी ने कहा कि 27 वर्ष की तपस्या हुई सफल
शाहपुर/आरा: भगवावस्त्र, भगवा झोला, हाथ में सारंगी लिए त्रिपुरारी उर्फ गौतम अपने बड़ी बहन के गांव पहुंचा। बहन के घर पहुंचते ही वह अपनी बहन से भिक्षण देही कहने लगे। जिसे देख उसकी बहन रोते- रोते अपने भाई से लिपट गयीं। इसे देख आसपास मौजूद लोगो के आंखों से आंसू छलक पड़े। 27 वर्षों के बाद एक बहन को उसका इकलौता भाई तो जरूर मिला परंतु वह अब सांसारिक जीवन का मोह माया त्याग संन्यासी जीवन व्यतीत करने में इच्छुक है।
भगवा वस्त्र धारण किये जब त्रिपुरारी उर्फ गौतम बहन के गांव पहुंचा तो उसे देखने के लिए लोगो का तांता लग गया। बहन का दिल भाई को देखते ही खिल उठा परंतु संन्यास ग्रहण करता देख टूट कर बिखर गया। भाई के समक्ष हाथ जोड़ कर बहन बार-बार उसे घर में रहने की बात कह रही थी। परंतु संन्यासी भाई अपनी बहन को कलयुगी जीवन को छोड़ लोक कल्याण के लिए संन्यासी जीवन जीने की बात कह रहा था।
भाई ने बहन से कहा कि, लोक कल्याण के लिए संन्यासी जीवन जरुरी है। पूरे विश्व में अरबों बेटे का जीवन अंधेरे में है। लोक कल्याण के लिए संन्यासी बनाना जरुरी है। जिसके बाद बहन अपने दुखते दिल पर पत्थर रख भाई को भिक्षा दे दिया। मामला शाहपुर प्रखंड के कर्जा गांव (karja shahpur) निवासी स्व मुरारी प्रसाद के संन्यास जीवन ग्रहण कर चुके पुत्र त्रिपुरारी का है जो अपनी बहन से भिक्षा लेने बड़हरा प्रखंड अंतर्गत हेतमपुर गांव आया था।
मालूम हो की शाहपुर प्रखंड के करजा गांव (karja shahpur) निवासी मुरारी प्रसाद के इकलौते पुत्र त्रिपुरारी का विगत 27 वर्ष पहले कोई आता पता नहीं चल पा रहा था । अचानक 27 वर्षों के बाद अपनी बहन के घर बड़हरा प्रखंड के हेतमपुर गांव पहुंचे। उनकी बहन उन्हे देखते ही पहचान गई , उसके बाद उनके गांव शाहपुर प्रखंड के करजा गांव में भी सूचना देने पर इनके परिवार के लोगों ने भी पहचान किया और वहा से उनको अपने घर पर लेकर आए लेकिन अपने परिवार के हाथ से चाय और पानी तक नहीं पिये, वह अंतिम भिक्षाटन लेकर चले गए।
उनके एक रिश्तेदार विनोद चंद्रवंशी ने खबरे आपकी को बताया की त्रिपुरारी उनके मामा के लड़के है। इनके पिता का नाम स्व मुरारी प्रसाद था माता का नाम स्वर्गीय फुलझड़ी देवी है। ये माता-पिता के इकलौते पुत्र तथा दो बहन है। संन्यासी बनने के बाद उनकी यह पहली यात्रा थी। हालांकि यह यात्रा परिवार से मिलने के लिए नहीं थी बल्कि उन्हें ऐसा संन्यासी जीवन का एक अहम विधान पूरा करने के लिए करनी पड़ी थी। दरअसल संन्यास ग्रहण करने के बाद एक अहम विधान के तहत उन्हें पहली भिक्षा अपने माता-पिता से लेनी थी। इसलिए वे अपने गांव पहुंचे थे। इस दौरान उन्हे जानकारी हुई की उनके माता-पिता अब नहीं रहें। तब वो अपनी बहन के गांव पहुंचे थे। पूछे जाने पर त्रिपुरारी ने बताया कि मैं उज्जैन महाकाल में रहता हूं वहां पर मेरा नाम गौतम है और वहां 22 दिसंबर से पहले मुझे पहुंचना है।