Kavi Shambhu Shikhar भोजपुरी भाषा और संस्कृति काफी समृद्ध रही है लेकिन अभी उसपर अपसंस्कृति का प्रहार तेज़ होता जा रहा है। भोजपुरी फिल्मों के संवाद लेखक और गायक अब अश्लीलता की तमाम हदों को पार कर रहे हैं। इसकी शुरुआत द्विअर्थी संवादों और सांकेतिक अभिव्यजनाओं से हुई थी। लेकिन अब न दूसरे अर्थ की जरूरत है न संकेतों की। सारा कुछ खुल्लमखुल्ला होता जा रहा है। किस गायक ने अपने किस प्रतिद्वंद्वी गायक के किन-किन महिला संबंधियों पर फुहड़ गीत बनाए इसपर चिंता नहीं व्यक्त की जा रही है बल्कि आम लोगों के बीच यह चटखारेदार चर्चा का विषय बना हुआ है। किसी का नाम लेना उचित नहीं है लेकिन खबर है कि एक भोजपुरी गायक ने दूसरे गायक के महिला परिजनों पर छींटाकशी वाला फुहड़ गीत रिलीज किया तो उसका अपहरण कर बक्सर के एक होटल में लाकर पिटाई की गई। भोजपुरी कला जगत में यह नौबत पहले कभी नहीं आई थी। आज गीतों के बोल इस कदर फूहड़ और अश्लील हो चुके हैं कि उन्हें शब्दतः लिखा भी नहीं जा सकता। अब वे एक दूसरे की पत्नी, मां, बहन, बेटी, चाची और मौसी तक पर गंदी छींटाकशी करने पर उतर आए हैं। एक दूसरे पर हिंसक हमले तक करने लगे हैं।
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ऐसा नहीं कि एक दूसरे पर छींटाकशी का प्रचलन मनोरंजन उद्योग में पहले नहीं था। कव्वाली में यह बहुत पहले से होता रहा है। अक्सर महिला और पुरुष कव्वालों के बीच मुकाबला आयोजित किया जाता रहा है। इसमें वे शेरो-शायरी के माध्यम से एक दूसरे पर छींटाकशी करते रहे हैं। लेकिन उसमें फूहड़ता नहीं बल्कि एक हद तक शालीनता रही है। उनकी छींटाकशी दर्शकों के मन को गुदगुदाती जरूर रही है लेकिन कभी गंदे विचारों का संचार नहीं किया। वे रूमानियत तक महदूद रहे हैं। यौनिकता तक नहीं पहुंचते। इसलिए उनके कार्यक्रम परिवार के साथ बैठकर देखे जा सकते हैं। कव्वाली की तर्ज पर भोजपुरी भाषा में भी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लेकिन उनमें स्त्री और पुरुष गायक शालीनता की सारी सीमाएं पार कर जाते हैं। उनके वीडियो अकेले में देखे जा सकते हैं लेकिन उनके मंचीय कार्यक्रमों का परिवार के साथ बैठकर आनंद नहीं लिया जा सकता। वे कब किस हद तक उतर जाएंगे कोई नहीं जानता।
Kavi Shambhu Shikhar – कमाल यह है कि भोजपुरी भाषी लोगों का एक बड़ा वर्ग इस तरह की हरकतों की निंदा करने की जगह उनकी अशिष्टता का रसास्वादन कर रहा हैं। आखिर ये कलाकार भोजपुरी भाषा और संस्कृति को दुनिया के सामने किस रूप में पेश करना चाह रहे हैं ? मनोवैज्ञानिक रूप से फुहड़ता की ओर लोगों का ध्यान जल्द जाता है। ऐसे वीडियो व्यापक रूप से देखे जाते हैं। यात्री बसों में धड़ल्ले से बजाए और दिखाए जाते हैं और कलाकार को आनन-फानन में सस्ती लोकप्रियता मिल जाती है। यह लोकप्रियता हासिल करने का शार्टकट रास्ता है।
बात भोजपुरी की ही नहीं है। आज विभिन्न भाषाओं में बन रहे वेब सीरिज में भी यही फार्मूला आजमाया जा रहा है। उनमें गाली-गलौज तक का इस्तेमाल किया जाता है। शरीर के गुप्त अंगों का खुलेआम उच्चारण किया जाता है। लेकिन फर्क इतना है कि उनका सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जाता। वे इंटरनेट पर मौजूद हैं। उन्हें देखना न देखना दर्शकों की इच्छा और मर्जी पर है। अश्लील और फूहड़ कार्यक्रमों का एक दर्शक वर्ग बिहार ही नहीं, भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में मौजूद है। यही कारण है कि मनोरंजन की दुनिया की सबसे बड़ी इंडस्ट्री पोर्न इंडस्ट्री बनी हुई है। इसके बाद द्विअर्थी संवादों वाले फूहड़ कार्यक्रम कमाई कर रहे हैं। लेकिन उनकी अपनी अलग दुनिया है। वे अपसंस्कृति के वाहक अवश्य हैं लेकिन किसी संस्कृति को सीधा नुकसान नहीं पहुंचाते।
लेकिन भोजपुरी गीत तो सार्वजनिक रूप से गूंजते रहते हैं। वे सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। सामाजिक समारोहों के दौरान लाउडस्पीकर पर बजते रहते हैं जिन्हें बच्चे भी सुनते हैं और महिलाएं भी। मंच पर भी उनका प्रदर्शन किया जाता है। सच्चाई यही है कि किसी भी भाषा के कलाकार एक दूसरे पर छींटाकशी में इतना नीचे नहीं गिरे हैं जितना भोजपुरी क्षेत्र के मौजूदा कलाकार।
सवाल है कि लोकप्रियता हासिल करने के लिए कलाकार आखिर कितना नीचे गिरेंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि भोजपुरी क्षेत्रों का बौद्धिक तबका आखिर कर क्या रहा है ? फूहड़पन के खिलाफ कोई सशक्त मुहिम क्यों नहीं चलाई जा रही है? सैद्धांतिक रूप से आंचलिक कलाकार अपने अंचल की सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विशिष्टताओं को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के निमित्त अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। यह उनका सांस्कृतिक दायित्व होता है। सवाल है कि क्या भोजपुरी फिल्मों के कलाकार इस जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं?
भोजपुरी गायकों और फिल्मकारों को इस बात का जरा भी अहसास नहीं है कि आज भोजपुरी बिहार की मात्र एक क्षेत्रीय बोली नहीं रह गई है। कई ऐशियाई देशों की राजभाषा का दर्जा प्राप्त कर चुकी है। दुनिया के सम्मानित विश्वविद्यालयों में इसकी पढ़ाई हो रही है। इसपर गंभीर शोधकार्य किए जा रहे हैं। Kavi Shambhu Shikhar
Kavi Shambhu Shikhar -भोजपुरी क्षेत्र से बड़े-बड़े लेखक और कलाकार निकले हैं। यह अंचल भिखारी ठाकुर जैसी शख्सियत की धरोहर है जिनकी तुलना शेक्सपीयर से की जाती है। मधुकर सिंह और मिथिलेश्वर जैसे विश्वविख्यात कथाकार निकले हैं। हफीज बनारसी और सुल्तान अख्तर जैसे शायर, लल्लन जी महाराज जैसे संगीतकार निकले हैं। युवा चित्रकारों की एक बड़ी टीम चित्रकला की दुनिया में अपनी कला का लोहा मनवा रही है। इस अंचल ने बेगम अख्तर जैसी गायिका को संगीत और गायन का प्रशिक्षण दिया है। वही अंचल आज निम्नकोटि के फूहड़ गीतकारों और गायकों का पोषण करने लगा है। जहां तक भोजपुरी फिल्मों का सवाल है इन्हें कम बजट में निश्चित लाभ देने वाला उद्योग माना जाता है। कम बजट के फिल्मकार या तो दक्षिण भारतीय फिल्मों की हिंदी में डबिंग करते हैं, हॉरर फिल्म बनाते हैं या फिर भोजपुरी फिल्म बनाते हैं। भोजपुर के लोग अपनी भाषा में बनी फिल्में चाव से देखते हैं और वे दुनिया के हर कोने में मौजूद हैं इसलिए भोजपुरी फिल्में चाहे जिस भी स्तर की हों, कभी घाटा नहीं देतीं। यही कारण है कि भोजपुरी क्षेत्र से दूर-दूर का संबंध नहीं रखने वाले निर्माता भी भोजपुरी फिल्म निर्माण में लगे हुए हैं।
शुरुआत की गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो और विदेशिया जैसी फिल्मों को छोड़ दें तो अधिकांश भोजपुरी फिल्में भोजपुरी संस्कृति का कहीं से प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। उनका एकमात्र लक्ष्य दर्शकों को आकर्षित करना और लाभ कमाना भर है। इसलिए उनमें तरह-तरह के मसाले डाल दिए जाते हैं। फूहड़ता उनके लिए सबसे गर्म मसाले का काम करता है।
Kavi Shambhu Shikhar – जो स्थिति बनी हुई है उससे भाषा और संस्कृति कलंकित हो रही है। दुनिया के सामने यही संदेश जा रहा कि भोजपुरी भाषा बोलने वाले लंपट और फुहड़ किस्म के लोग होते हैं। भोजपुरी भाषा और संस्कृति के प्रति निष्ठावान लोगों को इन प्रवृत्तियों का खुलकर प्रतिकार करना चाहिए और ऐसे निर्माताओं को आगे लाना चाहिए जो भोजपुर की लोक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाली फिल्मों का निर्माण करें। ऐसे गायकों को प्रोत्साहित करना चाहिए जो भोजपुरी लोकगीतों का संकलन और आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुतीकरण कर सकें और अश्लीलता की हांडी में लोकप्रियता और लाभ की खिचड़ी पकाने वालों का सामाजिक बहिष्कार कर देना चाहिए। आज इसकी सख्त जरूरत है।