Wednesday, January 1, 2025
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विजयोत्सव पर याद किए गए वीर बांकुड़ा बाबू कुंवर सिंह

Kunwar Singh:- भोजपुर जिले के जगदीशपुर किला परिसर में बाबू वीर कुंवर सिंह का विजय उत्सव मनाया गया।

Kunwar Singh:- भोजपुर जिले के जगदीशपुर किला परिसर में बाबू वीर कुंवर सिंह का विजय उत्सव मनाया गया।

  • हाइलाइट :- Kunwar Singh
    • स्वतंत्रता आंदोलन के अप्रतिम सेनानी थे वीर कुंवर सिंह
    • 80 साल के बुजुर्ग के जोश से कांप उठे थे अंग्रेज

आरा/जगदीशपुर: भोजपुर जिले के जगदीशपुर किला परिसर में बाबू वीर कुंवर सिंह का विजय उत्सव मनाया गया। वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव पर दिव्यांगों ने ट्राई साइकिल के साथ मतदाता जागरूकता रैली निकाली। इस रैली के माध्यम से नगरवासियों सहित सभी मतदाताओं को मतदान करने के लिए जागरूक किया गया। जिला व अनुमंडल प्रशासन की ओर से आायोजित रैली में उत्साह दिखा। डीएम, एसपी, डीडीसी सहित अन्य अधिकारियों ने हरी झंडी दिखा मतदाता जागरूकता रैली को रवाना कर उत्साह बढ़ाया। रैली किला मैदान के पश्चिमी द्वार से निकल झंझरिया पोखरा, अस्पताल रोड, ब्लॉक मोड़ से वापस पुनः झांझरिया पोखरा, मंगरी चौक होती सदर बाजार, कोतवाली होती हुई नया टोला में जाकर समाप्त हो गयी। रैली के साथ जगदीशपुर एसडीएम संजीत कुमार, एसडीपीओ राजीव चंद्र सिंह सहित अन्य अधिकारी मौजूद रहे।

80 साल के बुजुर्ग के जोश से कांप उठे थे अंग्रेज

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जगदीशपुर के राजा कुंवर सिंह आसपास के इलाके में अत्यंत सर्वप्रिय थे। 1857 विद्रोह के महानायक बाबू वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ कई लड़ाई लड़ी थी। 80 साल के बुजुर्ग के जोश के आगे अंग्रेजों को कई बार मुंह की खानी पड़ी। वीर कुंवर सिंह स्वतंत्रता आंदोलन के अप्रतिम सेनानी थे। 23 अप्रैल को अग्रेजों पर फतह हासिल करने के लिए विजय दिवस मनाया जाता है।

पूर्व अध्यक्ष , शाहपुर नगर पंचायत
पूर्व अध्यक्ष , शाहपुर नगर पंचायत
पति -गुपतेश्वर साह
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कुंवर सिंह ने किया नेतृत्व
जुलाई, 1857 में पटना में क्रांतिकारियों के नेता पीर अली को अंग्रेजों ने फांसी दे दी। पीर अली की मृत्यु के बाद 25 जुलाई को दानापुर के देशी पलटनों ने हवलदार रंजीत अहीर के नेतृत्व में स्वाधीनता का ऐलान कर दिया। ये पलटनें शाहाबाद के आरा जगदीशपुर की ओर बढ़ीं। कुंवर सिंह ने तुरंत अपने महल से निकल कर शस्त्र उठा कर इस सेना का नेतृत्व किया। कुंवर सिंह इस सेना के साथ आरा पहुंचे। आरा स्थित अंग्रेजी खजाने पर कब्जा कर लिया गया। जेल से कैदियों को रिहा कर दिया गया। अंग्रेजी दफ्तरों को गिरा दिया गया। इस विद्रोही जमात ने आरा के किले को घेर लिया। किले के अंदर थोड़े से अंग्रेज और सिख सिपाही थे। आरा के निकट एक आम का बाग था। कुंवर सिंह ने अपने कुछ आदमी आम के वृक्षों की टहनियों में छिपा रखे थे।

आमबाग में अंग्रेजी सेना पर फायरिंग
दानापुर छावनी के कप्तान डनवर के नेतृत्व में करीब 300 अंग्रेज और करीब सौ सिख सिपाही जब आम के बाग में पहुंचे तो ऊपर से गोलियां बरसनी शुरू हो गईं। इसमें डनवर मारा गया। साथ ही इस युद्ध में उसके 415 में से मात्र 50 अंग्रेज-सिख सिपाही जीवित बचे। इसके बाद मेजर आयर एक बड़ी सेना लेकर आरा किले में घिरे अंग्रेज सिपाहियों की सहायता के लिए बढ़ा।

अंग्रेज जीत गए
दो अगस्त, 1857 को आरा शहर से सटे बीबीगंज के निकट कुंवर सिंह (Kunwar Singh) की सेना और मेजर आयर की सेना में संग्राम हुआ। इस युद्ध में अंग्रेज जीत गये। अंग्रेजों ने जगदीशपुर पर भी कब्जा कर लिया। कुंवर सिंह अपने महल की महिलाओं के साथ वहां से निकल गये। उसके बाद आजमगढ़ के पास अतरोलिया में कुंवर सिंह ने डेरा डाला। 22 मार्च 1858 को अंग्रेजों ने मिलमैन के नेतृत्व में कुंवर सिंह पर हमला कर दिया।

अंग्रेजों को खदेड़ दिया
इस संग्राम में पहले तो कुंवर सिंह विचलित हुए पर थोड़ी ही देर के बाद हमला कर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों को हरा कर भगा दिया। उनके माल असबाब भी कुंवर सिंह के हाथ लगे। इस शर्मनाक घटना के बाद कर्नल डेम्स के अधीन बड़ी संख्या में अंग्रेज सैनिक कुंवर सिंह से लड़ने पहुंचे। एक बार फिर मुकाबला हुआ और पराजित होकर डेम्स ने आजमगढ़ में शरण ली। कुंवर सिंह (Kunwar Singh) भी आजमगढ़ पहुंचे और उन्होंने आजमगढ़ पर कब्जा कर लिया।

बनारस की ओर बढ़े
यह खबर सुन कर लार्ड केनिंग घबरा गया। इस बीच लखनऊ से भागे अनेक क्रांतिकारी कुंवर सिंह की सेना में शामिल हो गये। छह अप्रैल को लार्ड मार्कर और कुंवर सिंह की सेनाओं के बीच संग्राम हुआ। इतिहासकारों के अनुसार 80 साल का बूढ़ा शेर कुंवर सिंह अपने सफेद घोड़े पर सवार युद्धस्थल के बीच बिजली की तरह इधर -उधर लपकता हुआ दिखाई दे रहा था। लार्ड मार्कर हार गया। वह आजमगढ़ की ओर भाग गया। कुंवर सिंह ने उनका पीछा किया।

गंगा नदी की ओर बढ़े कुंवर सिंह
वीर कुंवर सिंह का लगर्ड के नेतृत्व वाली अंग्रेज सेना से फिर युद्ध हुआ। कुंवर सिंह फिर जीते। उसके बाद वह गंगा नदी की ओर बढ़ गए। इस बीच डगलस के नेतृत्व वाली सेना से युद्ध हुआ। पराजित डगलस को पीछे हटना पड़ा और बलिया की तरफ से भोजपुर के शिवपुर में गंगा पार करते समय कुंवर सिंह की बांह में गोली लग गई। कुंवर सिंह ने अपने बायें हाथ से तलवार खींच कर अपने घायल दाहिने हाथ को कुहनी पर से एक ही वार में काट कर उसे गंगा में फेंक दिया। यानी गंगा मां को समर्पित कर दिया। घाव पर कपड़ा लपेट कर उन्होंने गंगा पार किया।

जगदीशपुर कर लिया कब्जा
जगदीशपुर पर एक बार फिर से कुंवर सिंह ने कब्जा कर लिया। अंग्रेजों ने लीग्रेड के नेतत्व में सेना जगदीशपुर भेजीं और कठिन लड़ाई हुई। मैदान कुंवर सिंह के हाथों रही। यह 23 अप्रैल की बात है। पर घायल कुंवर सिंह 26 अप्रैल 1858 को चल बसे। पर जब उनकी मृत्यु हुई उस समय जगदीशपुर के किले पर स्वाधानीता का उनका हरा झंडा फहरा रहा था। इसी जीत के बाद जगदीशपुर में हर साल 23 अप्रैल को विजयोत्सव मनाया जाताया है।

स्वतंत्रता आंदोलन के अप्रतिम सेनानी थे वीर कुंवर सिंह

शाहपुर नगर पंचायत के पूर्व मुख्यपार्षद बिजय कुमार सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा से सीख लेकर हमें अपने जीवन में वैसा ही त्याग, राष्ट्र प्रेम की भावना जगाएं रखनी चाहिए। कहा कि वीर कुंवर सिंह स्वतंत्रता आंदोलन के अप्रतिम सेनानी थे।

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