Monday, January 27, 2025
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प्रथम स्वतंत्र संग्राम 1857 के क्रांतिकारी देवी ओझा, जिसे गोरे ढूढते रह गए

Revolutionary Devi Ojha of 1857: देवी ओझा तत्कालीन शाहाबाद वर्तमान भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड के सहजौली गांव के रहने वाले थे। बताया जाता है कि करीब 20 से 22 वर्ष की उम्र में वो बाबू कुंवर सिंह के सेना में शामिल ही गए।

Futen Ansari
raju yadav
Bijay
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  • अंग्रेजी फौज में खौफ पैदा करने वाला योद्धा देवी ओझा, जिसे गोरे ढूढते रह गए
  • अंग्रेजो ने क्षमादान के लिए अयोग्य घोषित कर सुनाई थी मौत की सजा
  • भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड के सहजौली गांव के रहने वाले थे देवी ओझा

Bihar/Ara: देश के प्रथम स्वतंत्र संग्राम 1857 में अपने युद्ध कौशल, रणनीति कौशल, गुरिल्ला युद्ध और क्रांतिकारी गतिविधियों से ब्रितानी हुकूमत के अधिकारियों में खौफ पैदा कर दिया था। देवी ओझा ने गोरो को इस कदर चोट पहुंचाई थी कि उनके बीच देवी का दहशत व्याप्त था। बीबीगंज व आरा की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले देवी ओझा के वीरता के कायल स्वयं बाबू वीर कुंवर सिंह भी थे। बाबू साहब ने देवी ओझा को अपनी मंत्री परिषद में स्थान देने के साथ ही सलाहकार भी बनाया था।उन्होंने देवी ओझा को तब कारीसाथ छावनी का हेड बनाया था।

Madan Yadav
Badak Kushwaha
Junior Engineer
Madan Yadav
Badak Kushwaha
Junior Engineer

देवी ओझा का खौफ व उनकी अंग्रेजों के प्रति आक्रोश का धमक महारानी विक्टोरिया तक महसूस हुई थी। जब उन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए गोरो को भारी क्षति पहुंचाई थी। जिसके बाद अंग्रेजो द्वारा इस महान क्रांतिकारी को तोप से बांधकर उड़ा देने तथा मौत से भी बड़ी सजा देने का एलान किया गया था। लेकिन वीर योद्धा देवी ओझा कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे।

Pintu bhaiya
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भारी संख्या में अंग्रेजी सेना को नुकसान पहुंचाने के कारण पटना कमिशनरी के तत्कालीन कमिश्नर ई0 ए0 सेमुअल्स काफी परेशान थे। यही कारण था कि नवंबर 1858 में महारानी विक्टोरिया के घोषणा पत्र में क्षमादान के प्रकाशित होने के बावजूद 14(क्रांतिकारियों) स्वतंत्रता सेनानियों को क्षमादान के लिए अयोगय बताया गया था। इन 14 क्रांतिकारियों में देवी ओझा का भी नाम था।

प्रसिद्ध इतिहासकार के0के0 दता ने अपनी किताब वायोग्राफी ऑफ कुंवर सिंह एंड अमर सिंह में इस घटना का जिक्र किया है। इस फरमान के बाद अंग्रेजी सेना इन क्रांतिकारियों के तलाश में जोर शोर से जुट गई। क्रांतिकारी भी काफी सतर्कतापूर्वक तरीके से अपनी योजनाओं को अंजाम देने लगे।

देवी ओझा को पकड़ने के लिए अंग्रेजी फौज से कई बार गांव की घेराबंदी भी। लेकिन देवी ओझा गोरो को बार-बार चकमा देकर निकल जाते थे। अंग्रेजी सेना इस स्वतंत्रता सेनानी को काफी सिद्दत के साथ ढूढती रह गई। लेकिन देवी ओझा कभी अंग्रेजो के हाथ नही लगे।

देवी ओझा (Revolutionary Devi Ojha of 1857) तत्कालीन शाहाबाद वर्तमान भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड के सहजौली गांव के रहने वाले थे। बताया जाता है कि करीब 20 से 22 वर्ष की उम्र में वो बाबू कुंवर सिंह के सेना में शामिल ही गए। संजय गांधी कालेज के इतिहास विभाग के अवकाश प्राप्त विभागाध्यक्ष व सहजौली गांव के रहनेवाले डा. कपिल मुनी ओझा बताते हैं देवी ओझा के नाम मात्र से ही अंग्रेजो की फौज में खौफ पैदा हो जाता था। वो एक ऐसा व्यक्तित्व थे जिन्हें गांव में ऐसा पहचान नही मिला जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ने के कारण मिली। आज वो इतिहास के पन्नो में अमर है।

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भीम सिंह 'भवेश'
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