Ashram Ara – शास्त्रीय संगीत की अग्रणी संस्था ‘आश्रम’ के सोलहवीं वर्षगांठ पर आयोजित हुआ कार्यक्रम
Ashram Ara आरा। सुर और साज से सजी महफिल में युवा प्रतिभाओं ने किया मंत्रमुग्ध। दर्शकों ने एक ओर ख्याल ठुमरी दादरा का लुत्फ उठाया, तो दूसरी ओर तबला वादन व कथक ने महफिल को लयात्मक बना दिया। अवसर था शास्त्रीय संगीत की अग्रणी संस्था ‘आश्रम’ के सोलहवीं वर्षगांठ का। कार्यक्रम का उद्घाटन साहित्यकार रंजीत बहादुर माथुर ने किया।
इस अवसर पर श्री माथुर ने कहा कि शास्त्रीय संगीत जगत के क्रान्तिक सोलह वर्षों ने आदर्श स्थापित किया है। आरा की प्रतिभा आश्रम (Ashram Ara) के सुरीले संस्कारों की छाया में पल बढ़ रहें हैं। आरा की सांगीतिक छवि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महसूस की जा रही है। कार्यक्रम में रवि शर्मा व श्रेया पाण्डेय ने युगल गायन प्रस्तुत करते हुए राग भोपाली में झपताल की बंदिश सुमिरन करो मन नाम प्रभु का व एकताल की बंदिश “पिया आ भी जाओ झूठी बतिया ना बनाओ” सुनाकर अद्भुत समां बांधा। मीरा भजन “मैं तो सांवरे रंग राची व देखी है नजर जब से का रूप सांवरिया” मां की प्रस्तुति ने भक्ति रस को अभिव्यक्त किया। तबला वादक विनय सिंह ने स्वतंत्र तबला वादन व रौशन कुमार ने हारमोनियम की सुगमता से तालियां बटोरी।
कर्यक्रम के समापन में आठ कथक कलाकारों ने मनोहारी कथक नृत्य प्रस्तुत किया। हर्षिता विक्रम ने तीन ताल में उपज और उठान, संजना व खुशी ने परन जोड़ी आमद, सलोनी, राशि व मुस्कान ने तिहाई तथा दूरदर्शन के कलाकार अमित कुमार व सोनम कुमारी ने घरानेदार बंदिश व बोलो से वाहवाही लूटी। संचालन कथक गुरु बक्शी विकास व धन्यवाद ज्ञापन अरुण सहाय ने की।
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