Thursday, November 21, 2024
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निष्ठा और ईमानदारी के अभाव के कारण पौधों ने तोड़ा दम- हीरा ओझा

Heera Ojha – Shahpur Assembly: कहना उचित होगा की अब सड़कों के किनारे लोगों की ओर से पेड़ लगाने की परंपरा गुजरे जमाने की बात हो गई है। जब बैलगाड़ियों व घोड़ागाड़ियों के कारवां चलते थे तो लोग सड़कों के किनारे फलदार पौधे रोपते थे ताकि राहगीरों को छाया के साथ-साथ रास्ते में फलों से कुछ भूख शांत करने की राहत प्रदान की जा सके लेकिन अब यह परंपरा कोसों दूर हो गई है। सरकारी प्रोत्साहन के बावजूद निष्ठा और ईमानदारी का अभाव साफ – साफ देखा जा सकता है।

  • रखरखाव के अभाव में सड़क किनारे लगे पौधे सूखे
  • बचा है तो केवल टूटा हुआ बांस का ग्रैवियन

Bihar/Ara: भोजपुर जिला में फोरलेन सहित अन्य सड़कों के चौडीकरण के दौरान सड़कों के किनारे लगे जो पेड़ कटावा दिए गये उनके स्थान पर एक तो पौधरोपण नहीं हुआ और अगर विभाग ने पौधे लगाए भी तो वे रखरखाव के अभाव में ही दम तोड़ दिया है। भोजपुर जिला मे शाहपुर NH 84 से सेमरिया रोड, गोसाईपुर होते हरिहरपुर से आगे जानेवाली सड़क किनारे लगाए गये पौधे देखरेख एवं रखरखाव के अभाव में लगने से पहले ही इन पौधों ने दम तोड़ दिया है। सरकार के एक अच्छी योजना में निष्ठा और ईमानदारी का अभाव साफ – साफ देखा जा सकता है।

Heera Ojha – Shahpur Assembly: निष्ठा और ईमानदारी के अभाव के कारण पौधों ने तोड़ा दम

वही morning walk पर निकले राजद नेता ने कहा की मै रोज सुबह कई गांवों का भ्रमण करता हूं । इस दौरान शाहपुर के सेमारिया मार्ग जो गोसाईपुर – हरिहरपुर होते यह मार्ग आगे दूर तक जाता है । इस मार्ग मे सड़क किनारे लगे पौधे देखरेख के अभाव मे सुख गये है। बचा है तो केवल टूटा हुआ बांस का ग्रैवियन, वो भी गिरा हुआ। सड़क किनारे फलदार व छायादार पौधे लगाने की परंपरा को धर्म के साथ भी जोड़कर इसे बढ़ावा दिया जाता रहा हैं। लेकिन लगाने वाले मे शायद इस निष्ठा और ईमानदारी की कमी रही होंगी। क्योंकि जो समय उसने चुना, इस मौसम में पौधे नहीं लगाए जाते है, पौधे बरसात के समय लगाये जाते है जो आसानी से लग जाते है।

कहना उचित होगा की अब सड़कों के किनारे लोगों की ओर से पेड़ लगाने की परंपरा गुजरे जमाने की बात हो गई है। जब बैलगाड़ियों व घोड़ागाड़ियों के कारवां चलते थे तो लोग सड़कों के किनारे फलदार पौधे रोपते थे ताकि राहगीरों को छाया के साथ-साथ रास्ते में फलों से कुछ भूख शांत करने की राहत प्रदान की जा सके लेकिन अब यह परंपरा कोसों दूर हो गई है। सरकारी प्रोत्साहन के बावजूद निष्ठा और ईमानदारी का अभाव साफ – साफ देखा जा सकता है।

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