निगहबान हुई आँखे
कोरोना वायरस ने सनातन परंपरा में अतिथियों के प्रति भावनाओं को बदल दिया
बिहार सरकार का बड़ा फैसला
बिहार आरा:(दिलीप ओझा) कोरोना वायरस के भय के असर ने दहशत के बीच जीने को मजबूर लोगो ने शताब्दियों पुरानी सनातन परंपरा को भी तोड़ दिया। सनातन परंपरा के अनुसार हम अतिथि देवो भव को चरितार्थ करते थे। परंतु कोरोना के भय से भयाक्रांत लोग अब अतिथि दुरे ही रहो की चल पड़ने को मजबूर हो चुके है।
स्थानीय लोगों द्वारा विदेश और बाहर के शहरों से आने वालों की जानकारी स्थानीय प्रशासन, पुलिस व अस्पताल के चिकित्सकों को देकर उनकी जांच कराने को कह रहे है। साथ ही वैसे लोगो को ग्रामीणों से दूर तबतक रहने को कहा जा रहा है जबतक उसकी संक्रमित ना होने की पुष्टि नहीं हो जाती।
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भय का आलम यह है कि किसी मुहल्ले में या किसी गांव में बाहर से अथवा विदेश से आ रहा है तो उससे लोग खतरा का परिचायक मानने लगे हैं। कोरोना के खतरे को देखते हुए लोगो का रुख सही भी माना जा सकता है।
कोई भी सभ्यता या परंपरा लोगो को असुरक्षित महसूस करने को सही नहीं ठहरा सकता है। वो भी तब जब मानवतावादी सभ्यता को ही को नष्ट करने वाली कोई अदृश्य शक्ति आगे बढ़ रही हो। अब इसे भय कहे या लोगो की जागरूकता कोई भी किसी तरह का खतरा मोल लेने के मूड में नही दिखता है। शायद यही कारण है कि लोग गांवो में बाहर से आने वाले लोगो पर स्वयं ही पैनी नजर रखे हुए है।