Bihar municipal election controversy: प्रशासकों के ही हाथों में नगरपालिका की कमान
खबरे आपकी: बिहार नगरपालिका चुनाव को पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने फिलहाल स्थगित कर दिया है। पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को लेकर अब सियासी रार भी छिड़ गयी है। पटना हाईकोर्ट ने सीटों को आरक्षित करने के फैसले को अवैध करार दिया है और माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इसे उल्लंघन माना है। वहीं अब राज्य सरकार ने भी तय कर लिया है कि पटना हाईकोर्ट के फैसले को वो सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। जिसके बाद अब चुनाव लंबे समय तक टले रह सकते हैं। इस स्थिति में फिर से प्रशासकों के ही हाथों में नगरपालिका की कमान रहेगी।
Bihar municipal election controversy: CWJC-14206 के याचिकाकर्ता अधिवक्ता सुनील कुमार यादव
भोजपुर जिला के बिहिया नगर पंचायत निवासी नीतीश कुमार की ओर से CWJC-14206 दाखिल याचिका के अधिवक्ता सुनील कुमार यादव ने कहा की पटना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया कि नगरपालिका चुनाव में लागू किये गये आरक्षण का तरीका गलत है और सीटों को आरक्षित करने के फैसले को अवैध करार दिया है।
विदित रहें की ये आदेश तब सामने आया जब प्रथम चरण की मतदान की तिथि नजदीक आ चुकी थी। राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव को फिलहाल स्थगित कर दिया। वहीं अब दो ही ऑप्शन सामने बचते हैं कि या तो सरकार अति पिछड़ा आरक्षित सीटों को सामान्य मानकर चुनाव कराए या फिर सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट निर्देश का पालन करे।
सरकार की ओर से साफ संदेश दे दिया गया है कि वो सीटों को सामान्य मानकर चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है। वहीं अगर ट्रिपल टेस्ट कराया गया तो इसमें कुछ महीने जरुर लग जाएंगे। इसकी प्रक्रिया कुछ ऐसी है जो वक्त जरुर लेगी। इस दौरान जब नगरपालिका में जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल खत्म हो गया तो सरकार की ओर से प्रशासक नियुक्त किये गये थे।
राज्य के 247 नगर निकायों में फिलहाल प्रशासकों की जिम्मेदारी
चुनाव टलने के बाद अब राज्य के 247 नगर निकायों में फिलहाल प्रशासक ही जिम्मेदारी संभालते रहेंगे. इनका कार्यकाल अब लंबा खींच सकता है। नगरपालिका प्रशासन की शक्तियां प्रशासकों को सरकार के द्वारा दे दी गयी थी। चुनाव परिणाम आने के बाद इनका कार्यकाल खत्म हो जाता लेकिन अब जब चुनाव टले हैं तो ये लंबे समय तक अब तैनात रहेंगे।
वैसे नियमों की बात करें तो अधिकारियों के मुताबिक कार्यकाल खत्म होने के बाद छह माह तक ही प्रशासक को तैनात रखा जा सकता है। फिलहाल जनवरी 2023 तक नियुक्त प्रशासक मान्य हैं. लेकिन अब चुनाव तबतक नहीं हुए तो इनका कार्यकाल बढ़ाया जाएगा।