Sunday, March 16, 2025
No menu items!
Homeधर्मपर्व-त्योहारसूर्य देव समस्त जीव के प्राणों के आधार हैं और मां षष्ठी...

सूर्य देव समस्त जीव के प्राणों के आधार हैं और मां षष्ठी उन प्राणों के स्वस्थ जीवन जीने की आस हैं

Glory of Chhath festival: भगवान सूर्य और प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी षष्ठी मां की उपासना पर्व के अवसर पर आईपीएस विनय तिवारी ने कहा की भारत के त्यौहारों को प्रकृति से भिन्न देखना लघुता है। भारत प्रकृति को ही अलग अलग रूपों में पूजता है। आदिशक्ति और आदिपुरुष के समन्वय से उत्पन्न भौतिक जगत को भारतीय चेतना सहर्ष प्रणाम करती है। भारतीय जीवन शैली ऋतुओं की ही जीवन शैली है। पर्वों,त्योहारों की जीवन शैली है। यहां हर ऋतु का अपना महत्व , उसके अपने गुण -संस्कार, उससे संबंधित पर्व त्यौहार हैं। यही भारतीय उल्लास , भारतीय हर्ष और भारतीय आनंद है।

ये भारतीय आनंद नवयुग के बड़े शहरों, मेट्रोपोलिटन नगरों में नहीं मिलता है। वहां के सुधीजन आनंद की कमी को मस्ती मौज से पूरा करने के लिए मॉल- मूवी – मसाला से जीवन को सजाते हैं। ये तो छोटे छोटे गांव, पुर,शहर, नगर जैसे भोजपुर, ललितपुर, समस्तीपुर हैं जो आज भी भारत की आत्मा, ऋतुओं की जीवन शैली और पर्वों के हर्षोल्लास को बचाए हुए हैं।

aman
ranjna
previous arrow
next arrow

भारतीय जीवन शैली 6 ऋतुओं के आसपास घूमती है। इन्हीं ऋतुओं के अनुसार हमारे पर्व हैं। भारतीय जीवन में शरद ऋतु- हेमंत ऋतु और आश्विन – कार्तिक मास की अनुपम काया बहुत गहरा प्रभाव डालती है। शरद की पूर्णिमा से कार्तिक की पूर्णिमा तक पूरे भारतवर्ष में एक अनुपम जाग्रति होती रहती है ।वेदों और पुराणों में कार्तिक माह की महिमा का विस्तृत व्याख्यान और प्रक्रिया बताई गई है। कार्तिक माह विशुद्ध पर्व माह है। उत्सव का माह है।

Mathematics Coching shahpur
jai
Mathematics Coching shahpur
jai
previous arrow
next arrow

कार्तिक माह में प्रतिदिन एक उत्सव होता है। प्रतिदिन प्रकृति की पूजा भारतवर्ष के किसी न किसी कोने में, किसी न किसी स्वरूप में होती ही रहती है। पूरे बुंदेलखंड में कार्तिक स्नान का बहुत बड़ा संकल्प होता है। महिलाएं पुरुष पूरे कार्तिक माह में एक एक दिन बाहर निकल कर नदियों तालाबों में स्नान करते हैं। यम नियम का अनुसरण करतीं हैं। एक अनाज , एक साग, एक फल ग्रहण करने का संकल्प होता है।

medico
sk
RN

बुंदेलखंड के लोग कार्तिक माह में घनघोर नियमों का पालन कर संयमित जीवन जीते हुए बेतवा, यमुना , केन के जल से प्रतिदिन स्नान करके अन्न भोजन का त्याग कर कार्तिक व्रत का अनुष्ठान करती हैं। नदियों के जल से स्नान , अनुशासित जीवन शैली, यम और नियमों का पालन, संकल्पित आसन, प्राणों को वायु के प्रवाह से संयमित करते हुए, कम बोलने का प्रत्याहार, अपनी बाह्य इंद्रियों का केंद्रीकरण जैसे अष्टांग योग के कई अंग कार्तिक में दिखते हैं।

कार्तिक के कृष्ण पक्ष में हम महापर्व पंचोत्सव दीपावली मनाते हैं। शुक्ल पक्ष की शुरुआत होते ही प्रतिपदा , द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी , अष्टमी, नवमी, एकादशी से होते हुए कार्तिक पूर्णिमा तक भारतीय मानस प्रकृति पूजा की बरसात करता है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा कर प्रकृति के सबसे दिव्य अवतार गाय की पूजा कर गोवंश के वर्धन की कामना की जाती है। द्वितीया को हम अन्ना देवता की उपासना करते हैं और भाईदूज का पर्व मनाते हैं।

चतुर्थी को गंगा, यमुना,बेतवा, केन, शारदा, गंडक जैसी नदियों में स्नान का विशेष महत्व है ।मां स्वरूप पवित्र नदियों के स्वच्छ पानी से स्वयं को आत्मिक और वैचारिक रूप से शुद्ध करना । अपने आस पास बहने वाली नदियों में स्नान करना। इसी सामूहिकता का आनंद है कार्तिक माह। हम जो करेंगे मिल कर ही करेंगे। एक साथ करेंगे इसका संकल्प है कार्तिक माह।

Glory of Chhath festival: चतुर्थी से ही षष्ठी पूजा का नहाय खाय पर्व प्रारंभ होता है। नदियों में नहाना और नदियों के पानी, मिट्टी के बर्तन, मिट्टी का चूल्हा में बना शुद्ध भोजन ग्रहण करना। पंचमी को ईश्वर को सृष्टि भोग लगता है। षष्ठी अर्थात छटी को सूर्य देव की उपासना होती है। उत्तर भारत के बड़े भौगोलिक क्षेत्र में कार्तिक षष्ठी के दिन होने वाली सूर्य देव और षष्ठी मां की पूजा वर्षों से हो रही है। सूर्य पूजा भारतीय जीवन का अभिन्न अंग वैदिक काल से है। गुजरात के महेसाणा जनपद के मोढेरा के सूर्य मंदिर से औरंगाबाद देव सूर्य मंदिर से होते हुए उड़ीसा का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर पश्चिम से पूर्व तक भारत में सूर्य पूजा की महत्वत्ता को आलेखित करते हैं।

प्रकृति मां का छंटवा अंश उनकी संतान के लिए होता है। हर माह में षष्ठी तिथि आती है। बुंदेलखंड में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हरछठ (हल षष्ठी) व्रत होता है। हरछठ व्रत में बुंदेलखंड के लोग कड़े नियमों का पालन करते हुए अपनी संतान के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मोरयाई छठ पूरे बुंदेलखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। दोनों त्योहारों में मां प्रकृति अपने पुत्रों के उत्तम स्वास्थ्य हेतु प्रतिबद्ध होती हैं।

Glory of Chhath festival: षष्ठी मां प्रकृति का छटवा अंश है। वो देवसेना भी हैं। वो ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं। भगवान सूर्य की बहन हैं। वो अष्टकमल पर आसीन हैं। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी का एक विशेष अंश षष्ठी मां हैं। पुराणों में षष्ठी मां का बृहद चित्रण हैं। षष्टी मां महादेवी भगवती वनस्पतियों की भी देवी हैं। सूर्य देव समस्त जीव के प्राणों के आधार हैं और षष्ठी मां उन प्राणों के स्वस्थ जीवन जीने की आस हैं।

ऋग्वेद से लेकर भविष्यपुराण तक सूर्य उपासना की विस्तृत चर्चा और प्रक्रिया बताई गई है। Glory of Chhath festival: ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक छठवें अंश को देवसेना कहा गया है। छठवें अंश होने के कारण देवसेना मां का प्रचलित नाम षष्ठी देवी/छठी मां भी है। सूर्य पूजा और सृष्टि की आदिष्ठत्री देवी षष्ठी मां की उपासना समय सीमा और भौगोलिक सीमा के परे है। छठ पूजा पर सूर्य देव को दिया जाने वाला अर्घ्य वैदिक संध्याउपासना का ही रूप है। सूर्य को हमें सुबह, दोपहर , शाम अर्घ्य देना चहिए। अपनी भौतिक प्रकृति को प्रतिदिन सूर्य से मिलाना चाहिए।

छठ पूजा से भारतीय संस्कृति के संध्या उपासना के अमूल्य अंग का अध्ययन कर उसको अपनाने की सीख सबको लेनी चाहिए। छठ यह संकल्प होना चाहिए कि हम सभी सूर्य को प्रतिदिन सुबह , दोपहर और संध्या अर्घ्य देंगे। हम प्रतिदिन ऊषा और प्रत्यूषा काल में संध्या वंदन करेंगे। सूर्यार्घ्य को अपनी जीवन शैली का अंग बनाएंगे। क्योंकि नदियों से मिले जल और सूर्य से मिली किरणों ने हमेशा से मानवता को पाला और पोषा है। बड़ी बड़ी सभ्यताएं और संस्कृतियां नदियों और सूर्य के परस्पर समन्वय से ही विकसित हो पाई है। नदियों के किनारे खड़े होकर सूर्य अर्घ्य के माध्यम से हम नदियों, तालाबों के जल और सूर्य की किरणों को कृतज्ञता दर्शाते हैं।

भारतीय संस्कृति मां गंगा, यमुना , सोन , घाघरा, सरयू, गंडक ना जाने और कितनी असंख्य धाराओं, जलाशयों, पोखरों ,तालाबों की ओर अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रही होती है। जब एक साथ हम सभी प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देंगे तो कितनी विशाल सामूहिक कृतज्ञता प्रकट होगी। पूरी की पूरी एक सभ्यता और संस्कृति नतमस्तक होगी अपने प्राकृतिक स्रोतों के सामने। हम बता रहे होंगे कि आप हैं तो हम हैं। नदियां हैं तो हम हैं। सूर्य हैं तो हम हैं। जलाशय हैं तो हम हैं। इस सामूहिक कृतज्ञता को दर्शाना ही हमारा उत्सव है, पर्व है, त्यौहार है।

- Advertisment -
Bharat Lal
Bharat Lal

Most Popular