Karpuri Thakur: खबरे आपकी
कर्पूरी ठाकुर 1952 में पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद वे जीवन भर चुनाव जीतते रहे और विधानसभा इलेक्शन में कभी हारे नहीं। दो-दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उनका न तो पटना में ओर न उनके समस्तीपुर स्थित पैतृक गांव पितौझिया (अब कर्पूरी ग्राम) में एक रहने का ढंग से घर तक नहीं बन पाया। जननायक कर्पूरी ठाकुर को अब केंद्र सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा की है।
कर्पूरी ठाकुर की सादगी के कई किस्से हैं। वे एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री रहे, नेता विरोधी दल रहे और दशकों तक विधायक रहे, उनके आसपास अभाव का होना अपने समय के युग धर्म का कटु सत्य है। कई बार वे लंबी यात्राओं के क्रम में एक ही कपड़ा पहने होते, जब नहाते तो उसे ही सुखाकर फिर पहन लेते थे। कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे। क्योंकि कार का खर्च वहन नहीं कर सकते थे।
कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार मुख्यमंत्री बनें तो अपने पुत्र रामनाथ ठाकुर को पत्र लिखा और कहा कि ‘‘तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना मेरी बदनामी होगी। रामनाथ ठाकुर को कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया।
बड़े-बड़े लोग अपने परिवारजनों को राजनीति में स्थापित करने के लिए अपने जीवनकाल में ही जोड़तोड़ और सारे इंतजाम कर देते हैं। यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि कर्पूरी ठाकुर अपने अनमोल जीवन और परिजनों को उपकृत और लाभ पहुंचाने की अपेक्षा अपने सिद्धांतों, आदर्शों एवं मूल्यों को प्रश्रय देते थे। परिवारवाद और वंशवाद को जनतंत्र के लिए घातक मानते थे।
जन नायक ने अपने कार्यकाल में अलाभकारी जोत से मालगुजारी समाप्त की। मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करना, हाईस्कूल तक की पढ़ाई के लिए सभी बच्चों की फीस माफी, सामाजिक और आर्थिक आधार पर बिहार सरकार की सेवा में आरक्षण देना, नदियों की घाटों पर लगने वाले सेवा कर को समाप्त करना, प्राथमिक विद्यालयों में सभी बच्चों को किताब, कॉपी, पैंसिल देना सहित कई असाधारण काम कर्पूरी जी ने किए थे।
जननायक कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) के जन्मशताब्दी वर्ष (24 जनवरी, 1924) पर उन्हें स्मरण करना कोई कैसे भूल सकता है? आडंबरविहीन और सादगीपूर्ण उनकी जीवनशैली अनुकरणीय थी। उनकी निष्पक्षता, निष्कपटता, उदारता और सदाशयता की विनम्र छवि लोगों को आकर्षित करती थी। सद्व्यवहार एवं सदाचार उनके विरज व्यक्तित्व में दुग्ध-सर्करा की भांति मिलीजुली और घुली थी। मानवोचित गुणों से परिपूर्ण ठेठ ग्रामीण पहचान उन्हें आडंबर विहीन बना देता था। जननायक कर्पूरी ठाकुर को अब केंद्र सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा की है।