Sunday, December 22, 2024
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JEEYAR SWAMI – परमात्मा का ध्यान करना ही भक्ति योग है

JEEYAR SWAMI – भक्ति योग सबके लिए सहज, सरल, सुलभ भी

JEEYAR SWAMI भोजपुर जिला के बिहिया प्रखंड अंतर्गत मझौली गांव में आयोजित ज्ञान यज्ञ महामहोत्सव के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने कहा कि शुकदेवजी महाराज ने परिक्षित को बताया कि संसार में भगवान की प्राप्ति के लिए, व्यक्ति के कल्याण के लिए, उद्धार के लिए अलग अलग साधन बताया गया है। इसके लिए भक्ति योग बताया गया है। भक्ति योग सबसे श्रेष्ठ है। सबके लिए है, सबके लिए सहज, सरल, सुलभ भी है। इससे बढ़ करके कोई श्रेष्ठ साधन नही है। भगवान के प्रति प्रेम रखना, होना ही भक्ति योग है। हमारे भीतर जो चिंगारी है, हमारे भीतर जो प्रकाश है, हमारे भीतर जो ज्ञान है, वैराग्य है उन ज्ञान का वैराग्य का प्रेम का तेज का जगत् में प्रैक्टिकल करना अपने जीवन को शांतिमय जीते हुए हर परिस्थिति में अपने दिल को, अपने दिमाग को, उन परमात्मा में लगाए रखना यहीं श्रेष्ठ है। परमात्मा का ध्यान करना ही भक्ति योग है। यहीं सबसे श्रेष्ठ है।

  • पृथ्वी पर सोने से काम चल सकता है तो पलंग की क्या जरूरत

JEEYAR SWAMI ने कहा कि शुकदेवजी जी महाराज ने परिक्षित से कहा कि न जाने इस दुनिया के लोग भी उस धनांधो के पास, उस कामांधो के पास जो रात दिन अपने काम में ही डूबे रहते हैं। धन का नशा में डूबे रहते हैं, पद की नशा में डूबे रहते हैं। रूप की नशा में डूबे रहते हैं, बैभव की नशा में डूबे रहते हैं। वैसे लोगों के आश्रय से अपना जीवन अपना पेट पालते रहते हैं। ऐसे अपने आप में व्यक्तियों पर तरस आता है। क्योंकि पृथ्वी पर सोने से काम चल सकता है। तो उन मनांधो, कमांधो, के लिए गद्देदार पलंग के लिए क्यों प्रयास करना।

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  • अपनी मर्यादा का त्याग नही करना चाहिए

शुकदेवजी महाराज परीक्षित से कहते हैं कि संसार में जितनी वस्तुएं हैं वह वस्तु प्रकृति के अधीन है। वह प्रकृति प्रकृति पुरूष के अधीन है। जिसको हम लोग परमात्मा कहते हैं। यदि परमात्मा का वरण करते हैं,अच्छे आचरण से रहते हैं तो बिना प्रयास के ही हमें प्रकृति की व्यवस्था प्राप्त ही हो जाएगी। नही भी प्रयास करने से प्राप्त हो जाएगी। जैसे हमें नही भी प्रयास करने से रोग हमें घेर लेता है उसी प्रकार हम नही भी प्रयास करेंगे तो हमें सुख प्राप्त होगा। इसलिए हमें अपनी मर्यादा, अपनी संस्कृति,अपने सदव्यवहार का त्याग नही करना चाहिए। अनीति, अन्याय, बेईमानी पुर्वक लोग धन कमाते हैं सुख शांति के लिए पर कितने लोगों को मिलता है। पर ठीक उसके विपरीत ही हो रहा है।

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