Lalu Dera – Shahpur: शाहपुर प्रखंड के लालू डेरा पंचायत के मरचैया डेरा गांव के समीप अधूरा तटबंध जो सरकारी फाइलों के अनुसार स्लुइस गेट के नाम पर यह “विपति का दरवाजा” छोड़ दिया गया है।
- हाइलाइट : Lalu Dera – Shahpur
- शाहपुर प्रखंड के दियारा में बांध बनाकर छोड़ दिया गया “विपति का दरवाजा”
- लालू डेरा पंचायत के मरचैया डेरा गांव के समीप अधूरा है तटबंध
- स्लुइस गेट के नाम पर छोड़ दिया गया है “विपति का दरवाजा”
आरा/शाहपुर: भोजपुर जिले के दियारा इलाकों में बरसात शुरू होते ही बाढ़ की आशंका से किसानों में बेचैनी बढ़ जाती है। दियारा के किसानों ने इस वर्ष भी फसलों की खेती बड़े पैमाने पर की है, लेकिन गंगा के बढ़ते जलस्तर से किसानों में दहशत हैं। शाहपुर प्रखंड के लच्छूटोला, सारंगपुर, सुरेमनपुर, जवइनिया, नंदलाल के डेरा, भूसहूला, गंगापुर, टिकापुर, चक्की नौरंगा, रामदयाल ठाकुर के डेरा, पचकौड़ी डेरा, करीमन ठाकुर का डेरा, बुझाराय के डेरा, राजपुर, चारघाट, चनउर, लक्ष्मणपुर, गोविंदपुर, बारिसवन, सिमरिया, पांडेपुर, रतनपुरा, लालू के डेरा, सुहिया, पीपरा, होरिल छपरा, देवमलपुर, रामकरही, सइया, मरचइया, माधोपुर सहित सैकड़ों गांव में गंगा के जलस्तर में वृद्धि के साथ ही बाढ़ का खतरा बना रहता है। हजारों एकड़ में खड़ी फसल डूब कर नष्ट हो जाती है।
अधूरे तटबंध के कारण बेपटरी हो जाती है कई परिवारों की जिंदगी : बाढ़ पर नियंत्रण पाने एवं दियारा में उसके फैलाव को रोकने के लिए गंगा नदी के किनारे बक्सर से कोईलवर तक एक लंबा तटबंध का निर्माण किया गया था, लेकिन निर्माण के समय ही स्लुइस गेट लगाने के नाम पर शाहपुर प्रखंड के मरचइया डेरा गांव के समीप छोड़े गये अधूरे तटबंध के कारण गंगा नदी का पानी इस रास्ते से होकर पूरे इलाके में फैल जाता है। जिसके कारण लोग घर बार छोड़कर पलायन को मजबूर हो जाते हैं। कई परिवारों की जिंदगी बेपटरी हो जाती है।
जनप्रतिनिधियों के लिए यह कभी मुद्दा नहीं रहा: शाहपुर प्रखंड के लालू डेरा पंचायत के मरचैया डेरा गांव के समीप अधूरा तटबंध जो सरकारी फाइलों के अनुसार स्लुइस गेट के नाम पर यह “विपति का दरवाजा” छोड़ दिया गया है। करीब 40 वर्ष बाद भी इसका निर्माण नहीं हो सका है। जिसके चलते शाहपुर प्रखंड क्षेत्र के कूल करीब 22 हजार एकड़ कृषि योग्य भूमि पर लगे करीब 18 हजार एकड़ की खड़ी खरीफ फसलें बर्बाद हो जाती है।
पिछले 20 वर्षों के दौरान क्षेत्र के लोगों ने झेली त्रासदी : साल 2003, 2013, 2016, 2019 व 2021 में ही आई बाढ़ के दौरान सरकार द्वारा सभी तरह के खर्चों को मिलाकर करीब 200 करोड़ रुपये से ज्यादा बांटे जा चुके हैं। ग्रामीणों के अनुसार तटबंध के निर्माण के समय ही मरचैया डेरा गांव के समीप बांध के निर्माण के लिए मिट्टी की भराई होती थी, लेकिन, तटबंध पूरा होने के साथ ही रात के समय एकाएक पानी में धंस जाती थी। कई बार ऐसा हुआ, जिसके बाद उक्त स्थान पर तटबंध का निर्माण कार्य पिछले करीब 40 वर्षों से अब तक रुका हुआ है। जिससे किसानों को भारी आर्थिक क्षति होती है।