Sunday, December 22, 2024
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नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस ट्रेन में लगे एलएचबी कोच से बची बहुत सारे यात्रियों की जान

Raghunathpur Buxar Train Accident: बिहार के बक्सर जिला अंतर्गत रघुनाथपुर रेलवे स्टेशन के पास बुधवार रात दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल से असम के कामाख्या स्टेशन जा रही नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस ट्रेन की स्पीड 128 किलोमीटर प्रति घंटा थी। इस ट्रेन की सबसे बड़ी खासियत है कि एलएचबी कोच एंटी-टेलिस्कोपिक है। एंटी-टेलिस्कोपिक का मतलब ये हुआ कि दुर्घटना के दौरान ट्रेन का एक कोच या उसका कोई हिस्सा दूसरे कोच में नहीं घुसता है। वो ऊपर चढ़ सकता है, बगल में रगड़ सकता है लेकिन अंदर नहीं घुसता। इससे दोनों कोच के पैसेंजर की जान पर एक खतरा कम हो जाता है। नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस में लगे एलएचबी कोच पुराने रेलवे कोच के मुकाबले हल्के और ऊंचे होते हैं जिससे ट्रेन काफी स्पीड कर चल सकती है। एलएचबी कोच वाली रेलगाड़ियां 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तक जा सकती हैं।

Raghunathpur Buxar Train Accident में मौत का आंकड़ा बड़ा हो सकता था लेकिन ट्रेन में लगे एलएचबी कोच (लिंके हॉफमैन बुश कोच) ने बहुत सारे यात्रियों की जान बचा ली। ट्रेन हादसे में 21 कोच पटरी से उतर गए जिसमें 2 कोच पलट गए, चार डगमगा गए और बाकी पटरी पर ही इधर-उधर होकर खड़े हो गए। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक दुर्घटना में चार लोगों की मौत हुई है जबकि 71 सवारी घायल हुए हैं जिनका इलाज अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है। इनमें कुछ को छुट्टी भी दी जा चुकी है। ट्रेन दुर्घटना में चार मौत में दो लोगों की जान झटका लगने पर ट्रेन से बाहर गिर जाने के कारण हुई जो मां-बेटी गेट के पास लगे बेसिन में हाथ धो रही थीं।

एलएचबी कोच वाली ट्रेन में सेंटर बफर कपलिंग सिस्टम होता है जो दुर्घटना में एक कोच से दूसरे कोच को होने वाले नुकसान को पुराने कोच के मुकाबले कम करता है। कपलिंग सिस्टम वो तरीका है जिससे ट्रेन के अलग-अलग कोच एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। एलएचबी कोच में हर कोच में डिस्क ब्रेक लगा होता है जिससे ट्रेन को बहुत ज्यादा स्पीड पर भी रोकने में ड्राइवर को मदद मिलती है। इस कोच में हाइड्रॉलिक सस्पेंशन लगा हुआ है जिससे एक तो जर्क कम लगता है और दूसरा ट्रेन चलने की आवाज कम आती है। इसमें साइड सस्पेंशन भी है जिससे सफर आरामदायक हो जाता है।

लिंके हॉफमैन बुश कोच यानी एलएचबी कोच जर्मन कंपनी लिंके हॉफमैन बुश बनाती है जिसका नाम अब बदलकर एल्सटॉम ट्रांसपोर्ट डॉइच्लैन्ड हो गया है। इस कोच को बनाने वाली जर्मन कंपनी के पुराने नाम पर ही इस कोच को संक्षेप में एलएचबी कोच कहा जाता है। साल 2000 में जर्मनी से 5 करोड़ की रेट से तब 24 कोच मंगाए गए और ट्रायल के तौर पर नई दिल्ली-लखनऊ शताब्दी एक्सप्रेस में लगाए गए।

ट्रायल में कुछ दिक्कत सामने आई जिसके बाद गड़बड़ी दूर करने के बाद दोबारा 2001 में इसे इसी ट्रेन में लगाया गया। इस बार सब ठीक रहा जिसके बाद जर्मनी से तकनीक ट्रांसफर समझौते के तहत इस कोच को भारत में बनाया जाने लगा। फिलहाल रेलवे कोच फैक्ट्री कपूरथला, इंटिग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई और मॉडर्न कोच फैक्ट्री रायबरेली में एलएचबी कोच बन रहे हैं। शताब्दी, राजधानी, दूरंतो समेत देश की ज्यादातर प्रीमियम ट्रेन में यही कोच लगे हैं।

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