Lord Ram: जीवन में पहली बार अवध छोड़ा तो सीधे बक्सर आए। रास्ते में ही ताड़का का वध कर दिया। राम और लक्ष्मण ने दिन-रात जगते हुए छह दिनों तक यज्ञ की रखवाली की। पूर्णाहुति के दिन मारीच और सुबाहु जैसे राक्षस आए। राम ने सुबाहु को मार डाला। वहीं मारीच को समुद्र पार भेज दिया।
- हाइलाइट :-
- प्रभु राम से जुड़ी ढेर सारी निशानियां आज भी है मौजूद, जिन पर बक्सर क्षेत्र के लोग नाज करते है
- मान्यताओं के मुताबिक 11 दिनों तक राम और लक्ष्मण ने इस क्षेत्र में किया था प्रवास
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देवनदी गंगा की उत्तरायण धार की कछार पर बसे बक्सर का श्रीराम से अटूट रिश्ता है। अपने जीवन में पहली बार जब राम ने अवध छोड़ा, तो इसी पुण्य धरा पर उनके चरण पड़े और बक्सर धाम हो गया। इसी मिट्टी पर पहली बार किशोरवय राम का पराक्रम पूरे जगत ने देखा।
अधर्म के खिलाफ धर्म नायक भगवान राम ने छेड़ी थी लड़ाई अधर्म के खिलाफ धर्म नायक राम ने पहली लड़ाई इसी जमीन पर छेड़ी थी। दशरथनंदन राम (Lord Ram) के भीतर का देवत्व प्रथमत इसी माटी पर उजागर हुआ था। उनसे जुड़ी ढेर सारी निशानियां आज भी मौजूद हैं, जिन पर बक्सर नाज करता है।
रामकथा के मुताबिक त्रेतायुग में उत्तरायण गंगा के किनारे का यह क्षेत्र निर्जन वन हुआ करता था। तब यहां 88 हजार ऋषि जप-तप और यज्ञ किया करते थे। इसमें राक्षस विघ्न डाला करते थे। कोई उपाय न देख महर्षि विश्वामित्र अयोध्या गये। धर्म की रक्षा के लिये उन्होंने राजा दशरथ से राम को अपने साथ ले जाने का आग्रह किया। न चाहते हुए भी दशरथ ने प्राणप्रिय राम (Lord Ram) को महर्षि के साथ जाने का आदेश दिया। किशोरवय राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ पहली बार अवध से बाहर निकले।
जीवन में पहली बार अवध छोड़ा तो महर्षि विश्वामित्र के साथ सीधे बक्सर आए भगवान राम
जीवन में पहली बार अवध छोड़ा तो सीधे बक्सर आए। रास्ते में ही ताड़का का वध कर दिया। राम और लक्ष्मण ने दिन-रात जगते हुए छह दिनों तक यज्ञ की रखवाली की। पूर्णाहुति के दिन मारीच और सुबाहु जैसे राक्षस आए। राम ने सुबाहु को मार डाला। वहीं मारीच को समुद्र पार भेज दिया।
आज भी बक्सर में पंचकोस परिक्रमा की कायम है परंपरा इसके बाद पांच दिनों तक पांच कोस में फैले पांच ऋषियों के आश्रम में प्रवास करते हुये महर्षि विश्वामित्र के आश्रम पहुंचे। आज भी बक्सर में पंचकोस परिक्रमा की परंपरा कायम है। मान्यताओं के मुताबिक 11 दिनों तक राम और लक्ष्मण इस क्षेत्र में रहे। फिर महर्षि विश्वामित्र के साथ दोनों भाई जनकपुर के लिए प्रस्थान कर गए। रास्ते में शिला बनी अहिल्या का उद्धार किया।
बक्सर में आज भी हैं भगवान राम के चरण व उंगलियों के निशान
गंगा किनारे स्थित प्राचीन रामेश्वरनाथ मंदिर के शिवलिंग पर आज भी उंगलियों के निशान नजर आते हैं। इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। इसी मंदिर के ठीक सामने वाली दिशा में जमीन के नीचे भगवान राम के चरण के निशान हैं। चरित्रवन में राम चबूतरा है। महत्वपूर्ण यह कि बक्सर के कण-कण में राम रचे-बसे हैं। त्रेता में आये राम की स्मृतियों को यहां के लोगों ने अपने हृदय में सहेज कर रखा है।
बक्सर से सटे अहिरौली में है माता अहिल्या मंदिर
बक्सर से सटे अहिरौली गांव में माता अहल्या का मंदिर है, जो इसकी गवाही देता है कि कभी अखिल ब्रह्मांड नायक राम इस रस्ते गुजरे थे। यज्ञ की रक्षा के लिए राम ने उत्तरायण गंगा किनारे अपने धनुष की कोटि से एक रेखा खींची थी। यही जगह रामरेखा घाट के नाम से मशहूर हुई। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक किशोरवय राम ने भगवान शिव की पूजा के लिए गंगा किनारे बालू से शिवलिंग बनाया और उस पर गंगाजल अर्पित करने लगे। जल की धार से बालू का शिवलिंग बह चला। यह देख राम ने अपने दायें हाथ की पांचों ऊंगलियों से शिवलिंग को दबा दिया। इसके चलते शिवलिंग पर उनकी पांचों ऊंगलियों के निशान बन बए।