खबरे आपकी पटना: जनता दल यूनाइटेड के वरिये नेता बशिष्ठ नारायण सिंह Bashistha Narain Singh ने कहा की आज तालिबान राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पटलों पर एक बार फिर से चर्चा में है ,वही तालिबान जिसने मलाला यूसुफजई को स्त्री-शिक्षा की अलख जगाने के ख़ातिर सिर में गोलियाँ मारी थीं।उस दौर में मलाला जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते हुए पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। ठीक उसी दौरान ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि ‘पूरी दुनिया में करोड़ों लड़कियाँ स्कूल नहीं पहुँच पा रही हैं’. जीवन और मृत्यु की लड़ाई में मलाला तो जीत गई,यह कहते हुए कि ‘मैं मलाला हूँ और मेरी ताक़त कलम है’.कुछ ही दिनों बाद ,स्त्री-शिक्षा के ख़ातिर वह दहशतगर्दों से बिना डरे युद्ध छेड़ देती है और दुनिया के कई प्रतिष्ठित मंचों से लड़कियों को कलम की ताकत समझाने में सफल दिखाई पड़ती है।बाद में उसे इसी कार्य के लिए नोबेल शांति पुरस्कार भी मिलता है।
Bashistha Narain Singh ने कहा की मलाला के इस निर्भीक उद्यम का परिणाम यह हुआ कि दुनिया की करोड़ों लड़कियाँ प्रभावित होकर स्कूल के लिए निकल पड़ी।उस वक्त में यह संदर्भ दुनिया के तमाम मुल्कों के लिए एक प्रेरणा बनकर उभरी थी।बिहार भी इससे अछूता नहीं था।उस वक्त मुझे भी मलाला यूसुफजई के संघर्ष ने बेहद प्रभावित किया था। मैं इस बात की सहमति रखता हूँ कि दशकों पहले बिहार की स्थिति भी स्त्री-शिक्षा में लगभग वैसी ही थी,जहाँ लड़कियाँ बहुत कम स्कूल जाती थीं या जिस तथ्य की ओर मलाला ने मंचों से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था।
उस वक्त स्त्री-शिक्षा और स्त्रियों की आत्मनिर्भरता को लेकर हमारा समाज भी उदासीन था।संगठनों के राजनीतिक एजेंडों से ऐसे विषय गायब थे। यह बात ठीक है , जिसे राम मनोहर लोहिया ने अपने लेख में उदधृत करते हुए लिखा है कि ‘ पूरी दुनिया में यदि स्त्री सबसे पहले आजाद हुई है तो वह धरती गोकुल है। जहाॅं से राधा और गोपियों ने पूरी दुनिया को प्रेम का संदेश छोड़ा था।’लेकिन कालांतर में समाज के भीतर औरतों के लिए लक्ष्मण रेखा खींचती चली गई।और समय ऐसा भी आया कि महिलाएँ चाहरदीवारी में कैद होती चली गईं।बाबजूद इसके कि हमारी पुरानी परंपरा समाज में औरतों के बराबरी की पेशकश हमेशा करती रही है।आज जब दुनिया के हर कोने से औरतें अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों के खातिर आवाज़ उठा रहीं हैं, ऐसे में हमारा और राजनीतिक संगठनों का दायित्व बढ़ जाता है।
आज इक्कसवीं सदी के सपने को हासिल करना औरतों को बिना साथ लिए अधूरा है।महान समाज सुधारक गाॅंधी, लोहिया और जयप्रकाश ने औरतों को मुख्यधारा में शामिल करने से लेकर उनके बेहतर भविष्य को लेकर अपने-अपने समय में काफी चिन्ता व्यक्त की थी। मैं यदि इन तीनों राजनेताओं के लिए समाज सुधारक शब्द का प्रयोग कर रहा हॅूं तो केवल इस खातिर कि ये तीनों जितनी मात्रा में नेता थे,कहीं उससे बढ़कर सुधारक भी थे। जनवरी 1930ई0 में गाॅंधी ने इर्विन के नाम एक ग्यारह सूत्री अल्टीमेटम जारी किया था, जिसमें आम तथा खास सभी माॅंगें उठाई गयी थी। इन माॅंगों में शराबबंदी सबसे अधिक प्रभावी था। गाॅंधी ने कई स्थलों पर माना है कि शराबबंदी के जरिये ही स्त्री-हिंसा को बहुत हद तक काबू में किया जा सकता है और यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि गाॅंधी स्त्रियों को मुख्यधारा में लाने के सबसे बड़े पैरवीकार थे।और बिना शिक्षा औरतों का मुख्यधारा में सम्मिलित होना असंभव था।
Bashistha Narain Singh ने कहा की मैं शराब और स्त्री-हिंसा को स्त्री-शिक्षा के बाधक तत्व के रूप में देखता हूँ।पहले शराब के कारण बिहार की बेटियाँ स्कूल जाने से डर रही थीं।इस रूप में शराबबंदी का मसला बिहार सरकार के स्त्री-शिक्षा अभियान से जुड़ा हुआ संदर्भ है।अतिशयोक्ति नहीं है कि महिला के शिक्षा और सुरक्षा के खातिर शराबबंदी भी लाया गया था।नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार ने स्त्री-शिक्षा,स्त्रियों के आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता के लिए कई प्रभावी कदम उठाए हैं,जिसका नतीजा आज हमारे समक्ष है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2020 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में व्यापक बदलाव हुआ है। बिहार में बेटियों की शिक्षा ने सामाजिक, स्वास्थ्य और आर्थिक बदलाव की नई इबारत लिखी है। रिपोर्ट में दस सालों में बिहार में बेटियों को शिक्षित करने के लिए चलायी जा रही योजनाओं से चहुमुंखी विकास की झलक दिख रही है। खासकर बेटियों को शिक्षित करने के लिए चलायी जा रही साइकिल, पोशाक और छात्रवृत्ति योजना के कारण लड़कियों की शिक्षा में पहले के बनिस्पत आठ प्रतिशत का सुधार हुआ है। एनएफएचएस-4 में शिक्षा की यह दर 49.6 प्रतिशत थी अब 57.8 प्रतिशत से अधिक हो गई है। शिक्षा का स्तर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भी सुधरा है। शहरी क्षेत्र में चार प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में नौ प्रतिशत का इजाफा हुआ है। यानी शिक्षा की लौ शहर से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में फैली है।
बेटियों के शिक्षित होने का ही असर है कि राज्य में बाल विवाह के खिलाफ बेटियां अधिक मुखर हुई हैं। एनएफएचएच -4 के अनुसार, 42.5 प्रतिशत बेटियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती थी। जबकि 2020 में यह आंकड़ा 40.8 फीसदी पर आ गया है।बिहार की महिलाओं ने हिंसा के खिलाफ आवाज बुलंद की है। 2015-16 में 43.2 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा से प्रताडित थी, अब यह आंकड़ा घटकर 40 प्रतिशत से भी कम है।
Bashistha Narain Singh ने कहा की श्री नीतीश कुमार ने 2008 में ‘मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना’ को लागू किया था। इस योजना का मु्ख्य मकसद आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में महिलाओं को पहचान दिलाना था. इसी कड़ी में ‘मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना’, ‘कन्या उत्थान योजना’ तथा ‘कन्या सुरक्षा योजना’ आदि के जरिए बाल विवाह को रोकने और कन्या जन्म को प्रोत्साहित करने के लिए बिहार सरकार आगे आई. आपको याद ही होगा कि पार्टी ने बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ हजारों किलोमीटर की मानव शृंखला बनाई थी,जिनकी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खूब चर्चा हुई।आपको बता दें,पंचायत और शहरी निकायों में महिलाओं के लिए पचास फीसदी आरक्षण करने वाला बिहार देश का पहला राज्य है.
इस समय बिहार में कुल 8442 मुखिया हैं जिसमें पांच हजार मुखिया महिला है. राजनीति के हर प्लेटफॉर्म पर महिलाओं की भागीदारी अब दिख रही है। हमने जेडीयू के भीतर भी नई प्रदेश कमेटी में महिलाओं को 33 फीसदी का आरक्षण दिया गया है.बिहार सरकार ने वर्ष 2016 में राज्य की सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत तथा शिक्षा विभाग की नौकरियों में 50 प्रतिशत तक आरक्षण का प्रावधान किया गया. इसी को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने सरकारी दफ्तरों में पोस्टिंग मे भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया। नीतीश जी की कोशिश है कि आरक्षण के अनुपात में महिलाएं एसडीएम, बीडीओ, सीओ और थानेदार जैसे पद पर भी तैनात रहें. महिला आरक्षण के कारण ही नियोजित शिक्षकों की कुल संख्या 3 लाख 51 हजार में करीब 2 लाख महिलाएं हैं.
Bashistha Narain Singh ने कहा की बिहार में महिलाओं को सशक्त बनाने में ‘बिहार रूरल लाइवलिहुड प्रोजेक्ट’ यानी ‘जीविका’ बेहद कारगर साबित हो रही है. इससे जुड़कर महिलाओं को उनके घर में ही रोजगार मिल रहा है. जीविका के तहत ‘स्वयं सहायता समूह’ ने उल्लेखनीय काम किया है. देश में सर्वाधिक संख्या में महिलाएं किसी भी ऐसे समूह से जुड़ीं हैं. आंकड़ों के मुताबिक 34260 ‘स्वयं सहायता समूह’ का गठन किया गया है जिनसे गरीब परिवार की 4.30 लाख महिलाएं लाभान्वित हो रहीं हैं. अपनी छोटी बचत के जरिए एसएचजी की महिलाओं ने करीब 4 करोड़ रुपये जमा किए हैं. हाल में सरकार ने महिला उद्यमी योजना के तहत 10 लाख रुपये तक की मदद करने की घोषणा की है, जिसमें से पांच लाख अनुदान के रूप में मिलेगा और बाकी पांच लाख लोन होगा.लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में नीतीश कुमार की बहुप्रतिष्ठित और बहुआयामी योजना ‘ मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना’ तथा ‘मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना’ से स्कूलों में लड़कियों के नामांकन में भारी वृद्धि हुई. अब तो सरकार ने मेडिकल, इंजीनियरिंग और प्रस्तावित स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी में नामांकन में 33 प्रतिशत सीट लड़कियों के लिए आरक्षित कर दिया है।देशभर में ऐसा करने वाला बिहार पहला राज्य बन गया है.
बिहार सरकार ने इस साल अपने बजट में इंटरमीडिएट पास अविवाहित लड़कियों को 25 हजार रुपये और स्नातक पास लड़कियों को 50 हजार रुपये दिए जाने का प्रावधान से स्त्री-शिक्षा को बल मिला है।इतना ही नहीं शिक्षा के स्तर बढ़ने से बिहार से प्रजनन दर में भी भारी कमी आई है।इससे ही उत्साहित होकर ही हमने जनसंख्या निरोधी कानून का विरोध किया है।मुझे इस बात को कहने में तनिक भी हिचक नहीं कि बिहार में महिलाओं को मुख्यधारा में लाने का काम अभी भी बहुत कुछ शेष है। इसके कई कारण हो सकते है। आज उन कारणों पर बात नहीं करूॅंगा।बहुत हद तक सामाजिक कुरीतियाॅं व मानसिक जड़ता भी इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार है। ऐसा नहीं कि इन कुरीतियों के खिलाफ अब तक आवाज नहीं उठी है, लेकिन हर आवाज विवशता की भेंट ही चढ़ती रही है।जरूरत है कि इस परिवर्तनकामी उद्यम में नागरिक व सामाजिक संगठन आगे आएँ।
Bashistha Narain Singh ने कहा की मुझे लगता है कि राजनीति का एक मकसद सामाजिक जड़ताओं और कुरीतियों का शोधन भी है। उसका हर अंतिम मकसद नागरिकों की जिम्मेदारी है।यह बात ठीक है कि हमने शराबबंदी के जरिये एक लक्ष्य हासिल कर लिया है ,लेकिन अभी व्यापक बदलाव की अपेक्षा है।बिहार नया इतिहास का पैरवीकार बनने जा रहा है। महिला आरक्षण, शराबबंदी, दहेज-विरोध, बाल-विवाह निषेध आदि के जरिये वह एक ऐसे मौन क्रांति की प्रस्तावना लिख रहा है, जिसका असर अगली पीढ़ियों के संस्कार और शिक्षा में दिखाई देगा। राजनीति में भी एक अलग ट्रेंड शुरू हो जाए तो और अच्छी बात होगी।
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