Badri Ahir: 16 मार्च 2025 को भोजपुर जिले के महान स्वतंत्रता सेनानी और दक्षिण अफ्रीका व चंपारण सत्याग्रह में महात्मा गांधी के सहयोगी रहे बद्री अहीर जी का पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
- हाइलाइटस : Badri Ahir
- पुण्यतिथि पर याद किये गए स्वतंत्रता सेनानी बद्री अहीर
- दक्षिण अफ्रीका से चम्पारण तक गांधी जी के साथी रहें
आरा/जगदीशपुर: 16 मार्च 2025 को भोजपुर जिले के महान स्वतंत्रता सेनानी और दक्षिण अफ्रीका व चंपारण सत्याग्रह में महात्मा गांधी के सहयोगी रहे बद्री अहीर जी का पुण्यतिथि के अवसर पर उनके पैतृक गांव हेतमपुर में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। इस दौरान ‘बद्री अहीर स्मृति द्वार’ का शिलान्यास भी किया गया। इस मौके पर पूर्व विधायक भाई दिनेश एवं डॉ सकलदेव सिंह मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे।
कौन थे बद्री अहीर?
बद्री अहीर भोजपुर जिले के जगदीशपुर प्रखंड अंतर्गत हेतमपुर गांव के रहने वाले थे। बद्री के पिताजी का नाम शिव नारायण अहीर था। जुलाई 1882 में बद्री जी गिरमिटिया मजदूर के रूप में नेटाल (दक्षिण अफ्रीका) पहुंच गये। वे “मर्चेन्टमैन” नामक जहाज पर कलकत्ता से नेटाल के लिए रवाना हुए थे तब उनकी उम्र 22 साल थी।
बद्री अहीर नेटाल में उमहलंगा वैली नेटाल सुगर कंपनी में काम करने लगे। नेटाल क्वाजुलु-नेटाल आर्काइव्स में बद्री के कलकत्ता से जाने संबंधी पूरा ब्यौरा उपलब्ध है। उनका कोलोनियल नंबर 27572 था। जाति के खाने में अहीर लिखा है। यह भी लिखा है कि उनकी लंबाई 168 सेंटीमीटर थी एवं उनकी पत्नी का नाम फुलमनिया था।
20वीं सदी के शुरुआत तक बद्री अहीर एक सफल कारोबारी बन चुके थे। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर होने वाले जुल्म के खिलाफ जब महात्मा गांधी ने आंदोलन शुरू किया तो बद्री उनके साथ जुड़ गए। महात्मा गांधी बद्री के एटॉर्नी (वकील) थे। उनका महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका पहुंचने के साथ ही संपर्क हो गया था।
महात्मा गांधी ने भी खुद बद्री के बारे में लिखा है- “यह मुवक्किल विशाल हृदय का विश्वासी था। वह पहले गिरमिट के रूप में आया था। उसका नाम बद्री था। उसने सत्याग्रह में बड़ा हिस्सा लिया था। वह जेल भी भुगत आया था।” दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह आंदोलन में 1913 में गिरफ्तार किये जाने वाले नेटाल के रहने वाले सबसे पुराने गिरमिटिया बद्री अहीर थे।
बद्री अहीर ने महात्मा गांधी को दिया था हजार पौंड
महात्मा गांधी को जोहांसबर्ग में निरामिषाहारी भोजनालय के लिए पैसे की जरूरत पड़ी तो उन्होंने बद्री को ही याद किया। उस समय महात्मा गांधी के पास उनके बहुत से मुवक्किलो के पैसे जमा रहते थे। एक दिन उन्होंने बद्री को यह बात बतायी तो महात्मा गांधी से बद्री ने कहा- भाई आपका दिल चाहे तो पैसा दे दो। मैं कुछ नहीं जानता। मैं तो आपको ही जानता हूं। बद्री के पैसे में से गांधी ने हजार पौंड दे दिये।