E-rickshaw vehicle – Shahpur: पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए डीजल वाहनों की जगह घर-घर जाकर कचरा उठाने के लिए ई रिक्शा की खरीद भोजपुर जिले के शाहपुर नगर पंचायत के द्वारा की गई थी।
- हाइलाइट :- E-rickshaw vehicle – Shahpur
- डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए हुई थी ई-रिक्शा वाहन की खरीद
- पर्यावरण सुरक्षा व डीजल खर्च में भी होती बचत- बिजय सिंह
आरा/शाहपुर: पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए डीजल वाहनों की जगह घर-घर जाकर कचरा उठाने के लिए ई- रिक्शा की खरीद भोजपुर जिले के शाहपुर नगर पंचायत के द्वारा की गई थी। नगर पंचायत की यह एक अच्छी योजना कही जा सकती है। इससे एक ओर पर्यावरण प्रदूषण रहित होता। वही दूसरी ओर डीजल से होने वाली खर्चों में भी बचत होती। लेकीन नगर पंचायत कार्यालय परिसर में खड़ी- खड़ी ये गाड़िया कबाड़ हो चली है।
पर्यावरण सुरक्षा व डीजल खर्च में भी होती बचत- बिजय सिंह
पूर्व मुख्य पार्षद बिजय कुमार सिंह ने बताया कि पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए डीजल वाहनों की जगह घर-घर जाकर कचरा उठाने के लिए ई रिक्शा खरीद की पहल की गई थी। इससे एक ओर पर्यावरण प्रदूषण रहित होता। वही दूसरी ओर डीजल से होने वाली खर्चों में भी बचत होती।
डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए ई-रिक्शा वाहन खरीदे
नगर के घरों से निकलने वाला सूखा, गीला कूड़ा को इन रिक्शों के माध्यम से डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन करने की योजना थी। इससे संकरी गलियों तक कूड़ा कलेक्शन करने में आसानी होती और नगर के लोगों को इसका लाभ मिलता। परंतु शाहपुर नगर पंचायत में खड़ी खड़ी इन गाड़ियों की बैट्री डाउन या खराब हो गई।
डीजल पर खर्च धनराशि की होती बचत
बता दें की नगर पंचायत शाहपुर कूड़े को ढोने के लिए आज भी डीजल वाहनों का इस्तेमाल करता है। इस पर नगर पंचायत के हर रोज हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं। इसे खत्म करने के लिए नगर पंचायत ने ई रिक्शा की खरीद काफी समय पहले से किया हुआ है। लेकिन नगर प्रशासन की कमी कहा जाये या वर्तमान प्रतिनिधियों की, खड़ी खड़ी इन गाड़ियों की बैटरी या तो डाउन हो गई है या खराब हो गई है।
संकरी गलियों में भी आसानी से होता कूड़ा कलेक्शन
संसाधन विहीन एनजीओ डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन में नगर पंचायत के हाथ वाले रिक्शों का इस्तेमाल करता है। कर्मी के अभाव के कारण हाथ वाले रिक्शा अधिक घरों तक नहीं पहुंच पा रहे है। अगर नगर प्रशासन ई-रिक्शा के संचालन पर ध्यान दिए रहता तो नगर की सफाई व्यवस्था बेहतरीन होती और संसाधन विहीन एनजीओ को 11 लाख 56 हजार की भारी भरकम राशि नहीं देने पड़ते।
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