Lalu Yadav – Shivnand: राजद के वरीय नेता शिवानंद तिवारी ने कहा की अपने स्वाभिमान की रक्षा स्वयं करनी होती है। इसमें जोखिम भी है. जहाँ सबकी गर्दन झुकी हो वहाँ खड़ी गर्दन नज़र में चढ़ती है
- हाइलाइट : Lalu Yadav – Shivnand
- लालू जी अकेले कुर्सी पर बैठते थे और बाक़ी लोग मंच के फ़र्श पर
- जब सभा में दो कुर्सी लगने लगी, एक पर लालू जी दूसरी पर मैं
Lalu Yadav – Shivnand खबरे आपकी: राजद के वरीय नेता शिवानंद तिवारी ने कहा की अपने स्वाभिमान की रक्षा स्वयं करनी होती है। इसमें जोखिम भी है. जहाँ सबकी गर्दन झुकी हो वहाँ खड़ी गर्दन नज़र में चढ़ती है. मुझे याद है कि जब मैं नीतीश कुमार को छोड़कर लालू जी के साथ आया था उस समय तक लालू जी की सभाओं का अंदाज कुछ बदल गया था। लालू जी अकेले कुर्सी पर बैठते थे और बाक़ी लोग मंच के फ़र्श पर. मिलन के बाद जब पहली मर्तबा लालू जी मुझे अपने साथ एक सभा में ले गए. वहाँ मैंने देखा कि मंच पर एक ही कुर्सी रखी हुई है. वह लालू जी के लिए. बाक़ी लोग फ़र्श पर. मुझे यह अपमान जनक लगा. मैं मंच पर बैठा ही नहीं. पीछे की तरफ़ मंच के घेरा के लिए जो बाँस बल्ला लगा था उसी के सहारे टेक कर मैं खड़ा हो गया. जब बोलने के लिये मेरा नाम पुकारा गया तो मैं माइक पर गया और जो बोलना था, बोला और उसके बाद फिर अपनी जगह पर जाकर खड़ा हो गया. अगली सभा में भी यही हुआ.
लालू जी अपने स्कूली जीवन से बहुत नज़दीक से जानते हैं. वे तुरंत समझ गए. तीसरी सभा में स्थिति बदल गई. दो कुर्सी लगने लगी. एक पर लालू जी दूसरी पर मैं. मुझे सहरसा की सभा याद है. शायद एयरपोर्ट के रनवे के बग़ल में. मंच बहुत छोटा था. दो कुर्सी के बाद जगह कम बची थी. लेकिन उसी में आपाधापी मची थी. हमारे यहाँ नेता के साथ फ़ोटो फ़्रेम में दिखाई देने की बहुत ललक रहती है. उसी मंच पर मेरे पैर के पास टेकरीवाल साहब बैठे नज़र आये. क्षण भर के लिए मुझे बहुत ख़राब लगा. लेकिन मैंने मुँह फेर लिया. जब टेकरीवाल साहब बेपरवाह वहाँ बैठे थे तब वहाँ की व्यवस्था में क्यों दख़ल देने जाऊँ !
और लोगों की बात छोड़ दीजिए. पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच कड़क स्वभाव वाले नेता के रूप में प्रसिद्ध जगता भाई का भी एक क़िस्सा सुन लीजिए. बक्सर के एक गाँव में किसी की मूर्ति के अनावरण का कार्यक्रम था.लालूजी को ही मूर्ति का अनावरण करना था. जगता भाई ने ही वह कार्यक्रम लिया था. उसके पहले बक्सर लोकसभा क्षेत्र से ही राजद उम्मीदवार के रूप में मैं लोकसभा का चुनाव से लड़ चुका था. उसी क्षेत्र के अंतर्गत राजपुर विधानसभा के तत्कालीन विधायक छेदी राम जी थे. उस कार्यक्रम की खबर न तो छेदी जी को थी न मुझे. छेदी जी ने ही फोन पर इसकी जानकारी मुझे दी. मैंने लालू जी से इसकी शिकायत की और कहा कि मैं उस कार्यक्रम में नहीं जाऊँगा. लेकिन लालू जी ने दबाव डाला तो उन्हीं के साथ हेलिकॉप्टर में मैं वहाँ गया. वहाँ हेली पैड पर जगता भाई भी स्थानीय लोगों के साथ लालू जी की स्वागत के लिये खड़े थे. संभवतः कांति सिंह जी भी वहाँ मौजूद थीं.
हेलीकॉप्टर से उतरने के बाद लालू जी का स्वागत सत्कार होने लगा. मैं जिला के साथियों के साथ मंच पर पहुँच गया. मैंने देखा कि मंच पर एक ही कुर्सी रखी है. नीचे श्रोताओं के लिए कुर्सी का इंतज़ाम था. नीचे से मैंने कुर्सी माँगी और लालू जी के लिए रखी गई कुर्सी के बगल में अपनी कुर्सी और उस पर आसन जमा कर मैं बैठ गया. लालू जी मंच पर आए. बगल वाली कुर्सी पर जम गए. पीछे पीछे जगता भाई और उनके पीछे अन्य लोग. मंच के बायीं ओर फर्श पर सब लोग. अब जगता भाई संकट में. अगर मैं भी उनकी तरह मंच के फर्श पर बैठा होता तो कोई बात नहीं थी. लेकिन मैं कुर्सी पर वे फर्श पर ! यह उनके लिए शर्मिंदगी की बात थी. उनके क्षेत्र के भी लोग सभा में आए हुए थे.
अंत में जगता भाई बाँयें से उठकर दाहिनी ओर आकर बैठ गये. उनको लगा होगा कि दाहिनी ओर बैठेंगे तो लालू जी की नज़र उन पर जाएगी ही और वे उनके लिए ज़रूर कुर्सी मँगा ही देंगे. लेकिन लालू जी तो लालू जी ठहरे वे कहाँ कुर्सी मँगाने जाएँ. अत में जगता भाई से जब सहन नहीं हुआ तो वे मंच से उतर कर पीछे की ओर चले गये और खेत के आर पर जाकर बैठ गए. अंत में सभा अध्यक्ष ने बोलने के लिए जगता भाई का नाम पुकारा. लेकिन वे नहीं आए. अध्यक्ष ने उनका नाम दुबारा पुकारा. तब लालू जी ने भोजपुरी में ही कहा ‘ कहाँ गइले जगता ! खेत के आर ओर पर बइठल बाड़े का.’ उसके बाद तो जगता भाई लगभग दौड़ते हुए मंच पर आये और जैसे तैसे भाषण की औपचारिकता पुरी की.
लालू यादव में आदमी को तौल लेने का विशेष गुण है. उनके सामने जल्दी कोई अपने को छुपा नहीं सकता. जगता भाई के साथ भी उस दिन लालू यादव ने उनकी तौल के अनुसार ही व्यवहार किया था. शिवानन्द