Muharram-हक की लड़ाई लड़ते हुए शहीद हुए हजरत इमाम हुसैन
मुहर्रम पर स्थानीय महादेवा स्थित इमामबाड़ा में हुई मजलिस
खबरे आपकी आरा शहर के महादेवा स्थित इमामबाड़ा में मुहर्रम के अवसर पर एक संक्षिप्त कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस मौके पर जेएनयू के छात्र मोहम्मद सादैन रजा ने बताया कि मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है। नये साल की शुरुआत इसी महीने से होती है। इसी मोहर्रम महीने में इमाम हुसैन के नवासे समेत अन्य लोगों को को यजीद के द्वारा शहीद कर दिया गया था। क्योंकि जब पैगंबर मोहम्मद साहब दुनिया से गए थे, तो दुनिया में यजीद का शासन कायम हुआ। यजीद गलत को सही कहता था, लोगो पर जुल्म करता था।
यजीद की बातों को इमाम हुसैन नहीं माने और इसका विरोध किया। जिसको लेकर इमाम हुसैन उस वक्त महज 72 लोगों के साथ जंग में खड़े हुए थे, जबकि यजीद लोगों की फौज मे कम से कम 30 से लेकर 2 लाख लोग शामिल थे। जंग के दौरान सभी को यज़ीदो द्वारा बेरहमी तरीके से कत्ल कर दिया गया था। यहां तक कि उन लोगों ने इमाम हुसैन के 6 माह के मासूम बेटे को भी नहीं बख्शा, उसको भी कत्ल कर दिया था। इसके बावजूद भी इमाम हुसैन अपने हक के रास्ते पर कायम थे।
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Muharram-उन्होंने बताया कि मुहर्रम में जुलूस इसी घटना को लेकर निकाला जाता है। इमाम हुसैन का मैसेज सच्चाई, इंसानियत, हक एवं मानवता के लिए है। इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए इमाम हुसैन की याद में हमलोग ताजिया निकालते हैं ताकि लोग जाने कि इमाम हुसैन ने इस हक के रास्ते के लिए कैसी-कैसी कुर्बानियां दी है।
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Muharram-उन्होंने बताया कि मुहर्रम को लेकर इस बार इमाम के चाहने वालों में काफी मायूसी दिखी है। मुहर्रम का जुलूस आरा शहर में तकरीबन दो सौ वर्षों से निकाला जाता है। जिसको हम लोग आगे बढ़ा रहे है। लेकिन कोविड के प्रोटोकॉल को देखते हुए इस बार ताजिया नहीं निकाला गया है। क्योंकि इस समय कोविड प्रोटोकॉल का हमलोगों ने फॉलो नहीं किया, तो सभी का नुकसान होगा साथ ही उन्होंने बताया कि हमलोगों ने इस बार कोविड के प्रोटोकॉल के नियम का पालन करते हुये सभी इमामबाड़े में मजलिस किया है। क्योंकि अगर हम मजलिस नहीं करते तो यह गलत होता। क्योंकि इमाम हुसैन ने हमलोगों के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। इस बार भी शहर के जितने भी इमामबाड़े हैं सभी में कोविड के प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए मजलिस हुई। लेकिन जुलूस नहीं निकाला गया।
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