Outsourcing Model Fails: भोजपुर जिले में शाहपुर नगर पंचायत में स्वच्छता प्रबंधन एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। आधे अरब रुपये से अधिक के वार्षिक बजट और एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को हर महीने लगभग 12 लाख रुपये का भुगतान करने के बावजूद, नगर में गंदगी और कचरे का अंबार लगा हुआ है।
- हाइलाइट्स: Outsourcing Model Fails
- शाहपुर में जमीनी स्तर पर “बेहतर स्वच्छता प्रबंधन” आउटसोर्सिंग का मॉडल विफल
आरा,बिहार: भोजपुर जिले में शाहपुर नगर पंचायत में स्वच्छता प्रबंधन एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। आधे अरब रुपये से अधिक के वार्षिक बजट और एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) को हर महीने लगभग 12 लाख रुपये का भुगतान करने के बावजूद, नगर में गंदगी और कचरे का अंबार लगा हुआ है। स्वच्छता व्यवस्था की जमीनी हकीकत और प्रशासनिक लापरवाही खबरे आपकी द्वारा लगातार उजागर की जाती रही है। शाहपुर नगर पंचायत में व्याप्त गंदगी और कचरा प्रबंधन की विफलता पर समाजसेवी कृष्ण कुमार ने चिंता व्यक्त की है। श्री कुमार ने स्पष्ट रूप से उस एनजीओ (NGO) को जिम्मेदार ठहराया है जिसे सफाई का ठेका दिया गया है।
कृष्ण कुमार ने कहा की पूर्व मुख्य पार्षद बबीता देवी के कार्यकाल में जब सफाई का काम विभागीय स्तर पर होता था, तो कम खर्च (करीब 7 लाख) में बेहतर परिणाम मिलते थे। यह बात गंभीर सवाल खड़े करता है कि क्या एनजीओ को काम सौंपने का निर्णय वास्तव में “बेहतर स्वच्छता प्रबंधन” के लिए था, या इसके पीछे कोई और कारण थे।
समाजसेवी कृष्ण कुमार ने पूर्व मुख्य पार्षद बबीता देवी के कार्यकाल का जो उदाहरण दिया है, वह महत्वपूर्ण है। उस समय सफाई विभागीय स्तर पर होती थी, जो कम खर्चीली और अधिक प्रभावी थी। इससे यह सवाल उठता है कि जब एक किफायती और कारगर व्यवस्था पहले से मौजूद थी, तो उसे बदलकर एक महंगी और संसाधन विहीन एनजीओ को जिम्मेवारी क्यों दी गई?
खर्च और परिणाम में भारी अंतर: सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि नगर पंचायत सफाई पर एक बड़ी राशि (लगभग ₹1.42 करोड़ सालाना सिर्फ एनजीओ को) खर्च कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं दिख रहा है। नगर में कचरा निस्तारण के लिए उपयुक्त स्थान का न होना इस व्यवस्था की सबसे बड़ी विफलता है।
जवाबदेही का अभाव: जब एक सार्वजनिक कार्य किसी निजी संस्था (जैसे एनजीओ) को सौंपा जाता है, तो उसकी निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करना नगर प्रशासन का कर्तव्य है। हर महीने करीब 12 लाख रुपये के भुगतान के बदले में एनजीओ के प्रदर्शन का मूल्यांकन क्यों नहीं किया जा रहा है? अनुबंध की शर्तें क्या हैं और क्या उनका पालन हो रहा है?
आउटसोर्सिंग का विफल मॉडल: नगर सरकार ने “बेहतर स्वच्छता प्रबंधन” की उम्मीद में सफाई का काम एक एनजीओ को सौंप दिया। इस पर हर महीने 11 लाख 87 हजार से ज्यादा रुपये (सालाना ₹1.42 करोड़) खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन, नगर के चारों ओर लगे कूड़े के अंबार यह साबित करते हैं कि शाहपुर नगर पंचायत में यह मॉडल जमीनी स्तर पर पूरी तरह विफल है।