Bashistha Narain Singh-शिक्षा के जरिए ही जनसंख्या-नियंत्रण संभव,कानून लाकर तो हम बागी तैयार कर बैठेंगे
खबरे आपकी Bashistha Narain Singh ने कहा की बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने नवंबर 1938 के अपने निबंध ‘जन्म नियंत्रण के उपाय’ में भारत की पारिवारिक,सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों के आलोक में जनसंख्या नियंत्रण की संभावनाओं को लेकर नेहरू,नायडू और टैगोर को चिह्नित करते हुए विस्तार से चर्चा की है।उन्होंने इस निबंध में सुभाषचंद्र बोस के साथ साथ गाँधी के मत को उद्धृत किया है। और अंततः उनके निबंध का पूरा जोर इस बात की ओर है कि ‘बिना शिक्षा जनसँख्या पर नियंत्रण संभव नहीं है’।उस समय से लेकर आजतक भारत में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बहसें होती रही हैं।लेकिन,किसी कारगर और अंतिम नतीजे पर हम आजतक बढ़ नहीं सके हैं। पढ़ें- भोजपुर में नहर से मिला बोरे में बंद किशोरी का शव, हत्या की आशंका
वर्तमान परिदृश्य में आज उत्तरप्रदेश ऐसा पहला राज्य नहीं है,जहाँ जनसंख्या नियंत्रण बिल लाया गया है।इससे पूर्व राजस्थान,मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात,उड़ीसा और हरियाणा जैसे राज्यों में इसपर पूर्व के वर्षों में कवायद की जा चुकी है।
असम ने तो दो वर्ष पूर्व कानून बनाकर इस वर्ष इसे लागू करने का एलान भी किया था।किन्तु इन राज्यों में यह कानून असरकारी तो दूर फिसड्डी अधिक साबित हुए।चूँकि जनता ने इस कानून को अपने ऊपर थोपा हुआ जबरिया कानून माना।जनसंख्या-नियंत्रण सीधे तौर पर एक व्यक्ति के निजी जीवन के मसलों से जुड़ा हुआ संदर्भ है।इसमें व्यक्ति,परिवार,समाज और उसकी सुरक्षा सभी एक चक्र की भाँति काम करते हैं।इसीलिए हमारा स्पष्ट तौर पर मानना है कि जनसंख्या नियंत्रण बिना सामाजिक-शैक्षणिक माहौल को बदले संभव नहीं है।हमें बेटियों को सर्वाधिक शिक्षित करना होगा,तभी जाकर हम जनसंख्या को नियंत्रित कर सकेंगे।बाबा साहेब आंबेडकर ने भी इससे इतर सभी संभावनाओं को वर्षों पहले नकार दिया था।
जिन राज्यों में यह कानून पहले लाया भी गया ,वहां भी वर्तमान समय में इस बात की कोई संस्थागत समीक्षा नहीं की गई है कि इन कानूनों से जनसंख्या नियंत्रण के मकसद में कितनी कामयाबी हासिल हुई है?. लेकिन, राज्यों में जनसंख्या वृद्धि की दर को देखते हुए लगता नहीं कि उसे कोई ज्यादा फायदा हुआ है. सबसे पहले साल 2000 में राजस्थान सरकार ने ऐसा कानून लागू किया था.
लेकिन, 2018 में उसे इस कानून को लचीला बनाना पड़ा. क्योंकि इससे बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाने में यह क़ानून का पूरी तरह नाकाम रहा. राज्य के लोगों और खासकर सरकारी कर्मचारियों में इस कानून का जबरदस्त विरोध था. लिहाजा वसुंधरा राजे सरकार ने 2018 में इस कानून के कई प्रावधानों को ख़त्म कर दिया. ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश में भी हुआ. वहां भी लोगों के एतराज को देखते हुए कानून के कई प्रावधानों को बदला गया. पढ़ें- आरा में अपराधियों ने कपड़ा दुकानदार समेत दो को मारी गोली, दुकानदार की मौत
भारत में लंबे समय से चीन की तर्ज पर जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून बनाने की मांग की जाती रही है. पीछे लगभग सौ से अधिक सांसदों ने पीएम को पत्र लिखकर इस पर कानून लाने की वकालत की थी। लेकिन हम भारतीय परिदृश्य की बात करते हुए शायद यह भूल जाते हैं कि बीते कुछ सालों में चीन ने इस कानून में कई बदलाव किए हैं. 2016 में चीन ने ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ को बदलते हुए ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ कर दिया और इसी साल वहां इसे ‘थ्री चाइल्ड पॉलिसी’ में बदल दिया गया है. आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. 135 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या को देखते हुए भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग उठती रहती है. देश में ‘हम दो, हमारे दो’ के नारे और परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को लेकर सरकारें जागरुकता बढ़ाती रही हैं. बीते कुछ दशकों में भारत में साक्षरता दर बढ़ने के साथ प्रजनन दर में कमी दर्ज की गई है. साल 2000 में प्रजनन दर 3.2 फीसदी था, जो 2016 में 2.4 फीसदी पहुंच गया था. भारत में जैसे-जैसे साक्षरता बढ़ रही है, बड़ी संख्या में लोग बच्चे पैदा करने से पहले सभी स्थितियों का आंकलन कर ‘फैमिली प्लानिंग’ अपनाते हैं. जिसका सीधा असर प्रजनन दर पर पड़ता है. भारत में जनसंख्या में वृद्धि की दर 1990 में 2.07 फीसदी थी, जो 2019 में 1.0 फीसदी पर आ चुकी है.
चीन के आईरिक्त ईरान, सिंगापुर, वियतनाम, ब्रिटेन, और हांगकांग सहित कई अन्य देशों ने भी दो बच्चों की नीति को लागू किया. लेकिन बाद में, उन्हें इस नीति को बदलना पड़ा. क्योंकि, इससे उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली सामाजिक समस्याएं अलग से खड़ी हो गईं।पढ़ें- भोजपुर में लंगूर की मौत के बाद अखंड हरिनाम संकीर्तन और वानर भोज
मेडिकल जर्नल लांसेट के एक शोध में अनुमान लगाया गया था कि दुनिया में 21वीं सदी के अंत तक जनसंख्या वृद्धि का क्या हाल रहेगा. इस शोध के अनुसार, 21वीं सदी के आखिर में भारत की जनसंख्या 109 करोड़ ही रह जाएगी. इस शोध के नतीजों को पाने के लिए लांसेट ने 15 साल से लेकर 49 साल तक की महिलाओं की प्रजनन दर के साथ साक्षरता, परिवार नियोजन आदि मानकों को शामिल किया था. जिसके आधार पर लांसेट ने दावा किया था कि भारत में जनसंख्या वृद्धि बहुत बड़ी समस्या नहीं है. हालांकि, शोध में कहा गया था कि 2048 तक भारत की जनसंख्या करीब 160 करोड़ तक पहुंच सकती है. लेकिन, इसके बाद जनसंख्या में कमी दर्ज की जाने लगेगी. शोध में कहा गया है कि 2048 के बाद भारत में प्रजनन दर गिरकर 1.29 फीसदी तक आ जाएगी।
Bashistha Narain Singh ने कहा की इसी बात की पेशकश श्री नीतीश कुमार भी अपने हवाले से कर रहे हैं।उनका जोर है कि इस तरह की समस्याओं को आप कानून के भय से नहीं अपितु सामाजिक शैक्षणिक स्तर को उठाकर कर सकते हैं।बिहार जैसे राज्यों में इसका सीधा असर देखने को मिला है।बुद्धिजीवियों का भी समूह इसी बात की ओर इशारा कर रहा है कि जनसंख्या नियंत्रण, कानून के जरिए संभव नहीं है।यह जन जागरूकता और स्त्री शिक्षा से जुड़ा हुआ मसला अधिक है।
पाँचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में वर्ष 2015-16 में जहाँ दसवीं पास महिलाओं का प्रतिशत 22.80 फीसदी था,उस स्थिति में प्रजनन दर 3.4 फीसदी था।जब 2019-20 में दसवीं पास महिलाओं का प्रतिशत 28 फीसदी हुआ तो प्रजनन दर घटकर 3.0 फीसदी पर पहुँच गया।
जब बारहवीं पास युवतियों के बीच हुए सर्वे हुआ,तो यह बात सामने आई कि दसवीं पास महिलाओं के बनिस्पत परिवार-नियोजन के आंकड़ों और सामग्रियों के प्रति यह वर्ग और अधिक गंभीर है।इसप्रकार यह बात सामने आई कि बिहार जैसे राज्यों में बिना शिक्षा के प्रचार प्रसार के जनसँख्या पर नियंत्रण संभव नहीं है।इसीलिए बिहार में लड़कियों की शिक्षा के लिए राज्य सरकार दिन रात काम कर रही है।साईकिल योजना,पोशाक योजना,अलग-अलग परीक्षाओं को पास करने के बाद पुरस्कार योजना ये सभी स्त्री-शिक्षा से जुड़ी हुई योजनाएं हैं,जिसका सकारात्मक परिणाम भी राज्य को मिल रहा है।इस क्रम में मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना की भी जितनी प्रशंसा की जाए उतना कम है।
Bashistha Narain Singh ने कहा की हमारे यहाँ सामाजिक स्तर पर भी अभीतक कई तरह की ऐसी मान्यताएँ और कुरीतियां भी विद्यमान है,जो परिवार-नियोजन के आधुनिकतम तकनीक से आज की पीढ़ी को दूर करता है।राज्य सरकार उन सामाजिक कुरीतियों को भी दूर करने के लिए सामाजिक स्तर पर भी निरंतर प्रयास कर रही है।