Shahpur Assembly – 1985 में दिया सीएम स्वतंत्रता सेनानियों,समाजवादियों का गढ़
शाहपुर विधानसभा (Shahpur Assembly) क्षेत्र स्वतंत्रता सेनानियों एवं समाजवादियों का गढ़ रहा है आजादी की लड़ाई से लेकर अब तक के इतिहास में शाहपुर विधानसभा क्षेत्र की भूमि ने कई इंकलाबी आंदोलनों को जन्म दिया। आजादी की लड़ाई प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन 1857 में वीर कुंवर सिंह के साथ देवी ओझा एवं रंजीत अहिर का नाम प्रमुख है देवी ओझा शाहपुर के छोटकी सहजवलि गांव के जबकि रंजीत अहीर शाहपुर निवासी थे। ऐसे कई आंदोलनों का शाहपुर विधानसभा क्षेत्र गवाह है।
आज़ादी के बाद हुए पहले Shahpur Assembly चुनाव से पंडित रामानंद तिवारी ने यहां जीत का रिकॉर्ड कायम किया। लगातार पांच बार प्रतिनिधित्व का रिकॉर्ड 1952 से 72 तक पंडित रामानंद तिवारी के नाम है। 1985 में कांग्रेस से जीते पंडित बिंदेश्वरी दुबे मुख्यमंत्री बने। करीब तीन दशक बाद 2000 के चुनाव में पंडित रामानंद तिवारी के बेटे शिवानन्द तिवारी ने राजद के टिकट पर जीत दर्ज कर पिता की विरासत संभाली। 2005 में भी दुबारा राजद के टिकट पर जीत दर्ज की पर विधानसभा के गठन नही होने से शपथ लेने का मौका नही मिला। और दुबारा हुए चुनाव में भाजपा नेत्री मुन्नी देवी से इन्हें हार मिली। भाजपा का पहली बार यहां खाता भी खुला। लगातार 2010 के चुनाव में भाजपा से मुन्नी देवी फिर जीत दर्ज करने में कामयाब रही।
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Shahpur Assembly 2015 के चुनाव में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बदल दिया। सिटिंग mla की जगह भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विशेश्वर ओझा को टिकट मिला। यहां महागठबंधन और एनडीए में सीधा मुकाबला हुआ था। इसमें महागठबंधन की ओर से राहुल तिवारी ने अपने पहले ही चुनाव में जीत दर्ज कर तीसरी पीढ़ी की विरासत संभाली। अब राजद को यहां अपनी पिछली सफलता दुहराने की आस है लेकिन समीकरण के बदल जाने से हालात भी बदल गये है। इस बार का सफर बहुत ही मुश्किल हो गया है। वर्तमान राजद विधायक को सफलता जदयू के सहारे मिली थी। इस बार जदयू एनडीए में है । भाजपा की ओर से पूर्व विधायक मुन्नी देवी सक्रिय है तो पूर्व भाजपा प्रत्याशी दिवंगत विशेश्वर ओझा की पत्नी एवं पुत्र राकेश ओझा के प्रति सहानुभूति लहर भी है। एक ही परिवार में टिकट के लिए आपसी खींचतान चर्चित है।
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