Signs of slavery in Shahpur: इतिहास में गुलामी के काले दौर की एक मौन गवाह है शाहपुर। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने यहां के लोगों पर कैसे जुल्म किए इसका गवाही देने वाला छावनी व एक विशालकाय कुआं आज भी विराजमान हैं।
- हाइलाइट्स: Signs of slavery in Shahpur
- शाहपुर में गुलामी की निशानी, आज भी विराजमान हैं छावनी व एक विशालकाय कुआं
- दमनकारी व्यवस्था की याद दिलाता, लोगों के खून पसीने से सींची जाती थी नील की खेती
आरा/शाहपुर: इतिहास में गुलामी के काले दौर की एक मौन गवाह है शाहपुर। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों ने यहां के लोगों पर कैसे जुल्म किए इसका गवाही देने वाला छावनी व एक विशालकाय कुआं आज भी विराजमान हैं। अंग्रेजी शासन में नील की खेती के बड़े किस्से हैं। अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया छावनी स्थानीय लोगों के शोषण का प्रतीक है। वही एक विशालकाय कुआं, जिसे नील की खेती के लिए सिंचाई हेतु बनाया गया था, शाहपुर में आज भी विद्यमान है। यह कुआं, अपने आकार और निर्माण की शैली से, उस समय की दमनकारी व्यवस्था की याद दिलाता है। यह न केवल उस दौर में किए गए निर्मम श्रम का परिचायक है, बल्कि उपनिवेशवादी ताकतों द्वारा स्थानीय संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग का भी प्रतीक है।
आज नील की खेती इतिहास बन चुकी है और अब इस क्षेत्र में घान-गेहूं की फसल लहलहाती हैं। पूर्व आत्मा अध्यक्ष सह प्रखंड किसान श्री सम्मान से सरकार द्वारा सम्मानित किसान उमेश चंद्र पांडे कहते हैं कि पूर्वजों से उन्होंने सुना है कि अंग्रेजों द्वारा आज से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व शाहपुर में अंग्रेजों द्वारा नील की खेती शुरू कराई गई थी। नील की खेती के लिए लोगों के खून तक अंग्रेज निकाल लेते थे। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अंग्रेजों द्वारा कराई जाने वाली नील के खेतों को लोग अपने खून से सींचा करते थे। अपने पूर्वजों से नील की खेती के लिए अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार की बातें सुनकर आज भी लोगों में सिहरन पैदा हो जाती है। कैसे लोगों को कुआं से सिंचाई के पानी निकलने के लिए जानवरों की तरह बांधकर दिन रात परिश्रम कराया जाता था।
शाहपुर के आसपास के गांवों के हट्टे-कट्ठे लोगों को जबरन छावनी में रखकर उनपर जुल्म कर नील की खेती कराई जाती थी। अंग्रेजों द्वारा शाहपुर के पूर्वी भाग में करीब 50 से 100 एकड़ जमीन पर नील की खेती कराई जाती थी। अंग्रेजों द्वारा इसके लिए विशालकाय व गहरे कुएं का निर्माण सिंचाई के लिए कराया गया। इसके साथ ही छावनी का निर्माण भी कराया गया था। इसमें अंग्रेज अधिकारी व उनके सिपाही यहां रहकर नील की खेती कराते थे। छावनी में करीब दर्जन भर सिपाही के रहने के काटेज बने हैं। स्थानीय लोगों द्वारा जब भी नील की खेती के विरुद्ध विद्रोह किया जाता अंग्रेजों द्वारा आसपास के सिपाहियों से विद्रोहियों का बेरहमी से दमन किया जाता था। बुजुर्ग बताते हैं कि यदि कोई नील की खेती करने में आनाकानी करता तो उसे सरेआम बांधकर बेरहमी से पिटाई की जाती थी। स्थानीय लोगों की मानें तो इस कुएं जैसा कुआं क्षेत्र में कहीं नहीं मिलेगा। फिलहाल यह छावनी व कुआं जीर्ण शीर्ण अवस्था में है।