Kalyug: भोजपुर जिले पीरो प्रखंड के परमानंद नगर में चल रहे चातुर्मास व्रत के दौरान प्रवचन करते हुए श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि मानव जीवन में कलयुग का महत्व अत्यधिक है।
- हाइलाइट्स: Kalyug
- मानव जीवन में कलयुग का महत्व कम नहीं: जीयर स्वामी
- कहा : कलयुग में भक्ति और सेवा का मार्ग ही सच्चा मार्ग है
आरा,बिहार: भोजपुर जिले पीरो प्रखंड के परमानंद नगर में चल रहे चातुर्मास व्रत के दौरान प्रवचन करते हुए श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि मानव जीवन में कलयुग (Kalyug) का महत्व अत्यधिक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कलयुग, जो कि वर्तमान युग है, सतयुग, त्रेता और द्वापर से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। स्वामी जी ने अपने प्रवचन में यह भी कहा कि यदि किसी व्यक्ति के मन में अच्छे विचार आते हैं और वह उन्हें अपने जीवन में उतारता है, तो निश्चित रूप से उसे अच्छे फल भी प्राप्त होंगे।
स्वामी जी ने आगे कहा कि यदि किसी व्यक्ति के मन में गलत विचार आता है, लेकिन वह केवल सोचता है और उसे कार्यान्वित नहीं करता है, तो कलयुग में उसे इसका पाप नहीं लगेगा। यह एक महत्वपूर्ण बात है, क्योंकि यह दर्शाता है कि कलयुग में मन की शुद्धता और विचारों की पवित्रता का कितना महत्व है। उन्होंने यह भी बताया कि सतयुग, त्रेता और द्वापर में कलयुग (Kalyug) की तुलना में अधिक पाप होते थे।
महात्मा जी ने जब एक गरीब दुष्ट को मणि वरदान में दे दी:
स्वामी जी ने एक दुष्ट व्यक्ति की कथा सुनाते हुए कहा कि वह व्यक्ति एक महात्मा के पास पहुंचा और अपनी कठिनाइयों का वर्णन किया। महात्मा जी ने उस गरीब दुष्ट को एक मणि वरदान में दे दी। महात्मा जी ने उसे बताया कि जो भी तुम मांगोगे, वह मणि तुरंत पूरा करेगा, लेकिन जो तुम मांगोगे, उससे दोगुना तुम्हारे गांव को मिलेगा। यह सुनकर दुष्ट व्यक्ति काफी दु:खी हुआ। उसने अपने घर को पक्का मकान बनाने के लिए मणि के सामने ध्यान किया। परिणामस्वरूप, उसका घर पक्का बन गया, लेकिन पूरे गांव वालों के लिए दो-दो मकान बन गए।
इस घटना से वह व्यक्ति बहुत दु:खी हुआ, जबकि उसे खुश होना चाहिए था। इसका कारण यह था कि वह केवल अपने भले के बारे में सोच रहा था और दूसरों के कल्याण की चिंता नहीं कर रहा था। स्वामी जी ने इस कथा के माध्यम से यह संदेश दिया कि हमें अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और दूसरों के भले के बारे में भी सोचना चाहिए।
कथा के दौरान धार्मिक मर्यादा का पालन आवश्यक
प्रवचन के दौरान स्वामी जी ने यह भी कहा कि कथा के दौरान धार्मिक मर्यादा का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। कीर्तन या रामायण पाठ करने की अपनी विशेष मर्यादा होती है। पाठ के दौरान गलत आहार का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह धार्मिक अनुष्ठानों की पवित्रता को प्रभावित कर सकता है। यज्ञ का आयोजन हमेशा सेवा भाव से होना चाहिए, जिसमें सभी श्रद्धालु एकजुट होकर भाग लें और एक-दूसरे की सहायता करें।
Kalyug: कलयुग में भक्ति और सेवा का महत्व
स्वामी जी ने यह भी बताया कि कलयुग में यदि हम अपने मन को शुद्ध रखें और अच्छे कार्य करें, तो हम अपने जीवन को सफल और सार्थक बना सकते हैं। भक्ति और सेवा का मार्ग ही सच्चा मार्ग है, जो हमें आत्मिक शांति और संतोष प्रदान करता है। जब हम दूसरों की भलाई के लिए काम करते हैं, तो हमें अपने जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें हमेशा अपने विचारों और कार्यों में संतुलन बनाए रखना चाहिए, ताकि हम अपने और दूसरों के जीवन को सुखमय बना सकें।