बिहार में विधान सभा चुनाव (Bihar election) की आहट से इलाके की फिजा बदलने लगी। कोरोना के बीच अब चौक-चौराहों पर चुनाव की चर्चा होने लगी है।
कार्यकर्ताओं का छलका रहा दर्द: बोल रहे, केकर-केकर झोला ढोअल जाव
राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले लोग अभी से ही (Bihar election) चुनावी गणित बैठाने में जुट गये हैं। टिकट की दावेदारी भी शुरू हो गयी है। इसमें पूर्व और वर्तमान प्रतिनिधि से लेकर वर्षों से पार्टी का झंडा ढोने वाले कार्यकर्ता भी शामिल हैं।
वंशवाद व परिवारवाद के आगे निष्ठावन कार्यकर्ताओं की पूछ नहीं
झंडा ढोते-ढोते बीत गयी उम्र और टिकट पा जा रहे बड़े नेताओं के परिवार वाले
इधर, (Bihar election) चुनाव की गर्माहट शुरू होते ही दर्जनों निष्ठावान कार्यकर्ताओं का दर्द भी छलकने लगा है। सालों से टिकट की आस लगाये इन कार्यकर्ताओं को अबकी बार भी टिकट की उम्मीद नहीं है। झंडा ढोते-ढोते बीत गयी उम्र और टिकट पा जा रहे बड़े नेताओं के परिवार वाले! इसके लिये विरासत की राजनीति को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। वंशवाद व परिवारवाद भी कम जिम्मेदार नहीं है। वंशवाद व परिवारवाद के आगे निष्ठावन कार्यकर्ताओं की पूछ नहीं! Bihar election.
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