जगदीशपुर के ज्ञानपुरा गांव निवासी वीर चंदन ने देश की खातिर दे दी जान
चंदन की शहादत की खबर से गांव में गर्व के साथ गम का माहौल
बेटे की शहादत पर पिता को गर्व, बोले: देश के काम आया चंदन
शहीद चंदन के बारे में जानने के लिए पूरी खबर विस्तार से पढे़।
आरा। भोजपुर के वीर सपूत चंदन ने देश की खातिर शहादत दे दी। भारत-चीन की सीमा पर लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में भोजपुर का बहादुर बेटा चंदन कुमार वीरगति को प्राप्त हो गया। सीमा विवाद में चीन के सैनिकों के साथ झड़प के दौरान बहादुरी और पराक्रम दिखाते हुये चंदन ने अपनी जान न्योछावर कर दी। शहीद चंदन जगदीशपुर अनुमंडल के ज्ञानपुरा गांव निवासी हृदयानंद के पुत्र हैं।
बुधवार की दोपहर चंदन की शहादत की खबर परिजनों को मिली। इससे उनके घर सहित पूरे गांव का माहौल गमगीन हो गया। एकबारगी शहादत की खबर से ग्रामीण भी सन्न रह गये। हालांकि घर व गांव के लोगों को अपने बहादुर बेटे की शहादत पर गर्व भी है। रूंधे गले से पिता ने कहा कि उनका बेटा देश के काम आ गया। उनका बेटा अमर हो गया। इससे बड़ी खुशी क्या हो सकती है?
चंदन कुमार चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनकी शादी अभी नहीं हुई थी। तीनों बड़े भाई भी सेना में ही हैं। पिता किसान हैं और गांव पर रह खेती-बारी करते हैं। सोमवार की रात ही भोजपुर जिले के ही बिहिया के पहरपुर गांव निवासी रविशंकर ओझा के पुत्र कुंदन ओझा भी चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में शहीद हो गये थे। इस खूनी संघर्ष में अबतक जिले के दो बहादुर बेटे बलिदान हो चुके हैं। उल्लेखनीय है कि लद्दाख की गलवान घाटी में पिछले एक माह से जारी टकराव सोमवार की रात हिंसक हो गया था। इस दौरान चीन के सैनिकों ने रात के अंधेरे में भारत के जवानों पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में भारत के 20 जांबाज जवान शहीद हो गये। इनमें भोजपुर के भी दो सपूत शामिल हैं।
शादी से पहले शहीद हो गया भोजपुर का बेटा चंदन
लॉकडाउन के कारण टलती गयी शादी की तिथि
अप्रैल से बढ़ा कर नवंबर कर दिया गया था शादी का डेट
अब नवंबर में होने वाली थी शादी, शुरू हो गयी थी तैयारी
देश के लिये प्राण न्योछावर कर देने वाले भोजपुर के बेटे चंदन कुमार की इसी साल शादी होने वाली थी। शादी का डेट भी तय हो गया था। लेकिन पहले लॉकडाउन के कारण शादी टल गयी। अब मिट्टी के कर्ज चुकाने के फर्ज ने हमेशा के लिये उनकी शादी रोक दी। जगदीशुपर प्रखंड के ज्ञानपुर गांव का यह सपूत शादी होने से पहले ही शहीद हो गया। इस कारण होमगार्ड की नौकरी छोड़ किसानी करने वाले हृदयानंद सिंह के घर में कोहराम मचा है।
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जानकारी के अनुसार चंदन की शादी अप्रैल महीने में होने वाली थी। लेकिन कोरोना संकट व लॉकडाउन के कारण उनकी शादी टल गई। ऐसे में शादी का डेट बढ़ा कर पहले मई व फिर नवंबर में फिक्स किया गया। घर में इसकी तैयारी भी शुरू हो गयी थी। लेकिन इसी बीच सोमवार की रात लद्दाख की गलवान घाटी में भारत व चीन के सैनिकों के बीच संघर्ष हो गया। इसमें चंदन शहीद हो गये। इससे उनकी शादी की सारी तैयारी धरी की धरी रह गयी। शहादत की खबर मिलते ही उनके घर में रोना-धोना मच गया। जिस घर में बेटे की शादी की तैयारी चल रही थी। बुधवार की दोपहर वहां शहीद बेटे का पार्थिव शरीर आने का इंतजार किया जा रहा था।
2017 में ज्वाइन किया था फौज, लद्दाख में थी पहली पोस्टिंग
आरा। ज्ञानपुर गांव के वीर चंदन की तीन साल पहले नौकरी लगी थी। चंदन ने 2017 में आर्मी ज्वाइन की थी। ट्रनिंग के बाद उनकी पहली पोस्टिंग 2019 में लद्दाख में हुई थी। तब से वह वहीं तैनात थे। चचेरे भाई जीतेंद्र कुमार के अनुसार चंदन ने कौंरा हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। उसके बाद ही उनका दानापुर में जीडी के पद पर हुआ था। ट्रेनिंग के बाद लद्दाख में पोस्टिंग हो गयी थी। फिलहाल शादी की तैयारी चल रही थी।
होली में गांव आये थे चंदन, सात रोज पहले पिता से हुई थी बात
आरा। देश के लिये शहादत देने वाले चंदन होली में गांव आये थे। कुछ रोज बाद डयूटी पर चले गये थे। शादी में गांव आने वाले थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण शादी के साथ गांव आने का डेट भी बढ़ता जा रहा था। अब उनके गांव आने का कभी खत्म नहीं होने वाला इंतजार ही रह गया है। एक सप्ताह पहले ही उनकी अपने पिता से बात हुई थी। तब उन्होंने घर व पूरे गांव के लोगों का हालचाल पूछा था। मां सहित गांव पर रहने वाली भाभियों से बात हुई थी। सभी से अपना ख्याल रखने और अच्छे रहने को कहा था। तब किसी को क्या पता था कि यह अंतिम बात होगी। घर के सदस्य इस बात को याद कर फफक पड़ते हैं। चार भाइयों सबसे छोटा होने के कारण सबका दुलारा था। वह अपने माता-पिता व सेना में तैनात भाइयों से मोबाइल के जरिये बराबर कंटेक्ट में रहता था।
देश सेवा में परिवार, चंदन के तीनों भाई भी सेना में
आरा। ज्ञानपुर गांव निवासी किसान हृदयानंद सिंह के बेटों में देश सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी है। उनके चारों बेटे सेना में हैं। इनमें चंदन ने शहादत देकर न सिर्फ पिता, गांव व जिला बल्कि पूरे देश का नाम रोशन किया है। जानकारी के अनुसार चंदन के बड़े भाई देव कुमार सिंह राजस्थान के गंगानगर में नायक सूबेदार के पद पर हैं। दूसरे भाई संजीत सिंह हैदराबाद में और तीसरा भाई गोपाल सिंह हिमाचल में चीन के बॉर्डर पर हैं। पोस्टेड है। पिता हृदयानंद सिंह दस साल पूर्व होमगार्ड की नौकरी छोड़ खेती करते हैं। मां धर्मा देवी गृहणी है। चंदन की चार बहन हैं जिसमें सुमित्रा देवी, सुसातो देवी, जोनी देवी व उषा देवी है। सभी का शादी हो गयी है।
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छह दिनों से बात नहीं हो पाने से परेशान था पूरा परिवार
आरा। लद्दाख की बर्फीली घाटी में तैनात चंदन से से उनके घर के लोगों की पिछले छह दिनों से बात नहीं हो पायी थी। इस कारण घर के सभी सदस्य परेशान थे। मंगलवार को लद्दाख घाटी में चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष की खबर से भी परिजन चिंतित थे। जैसे ही कि संघर्ष में 16 बिहार रेजमेंट के कुछ जवान शहीद हो गये हैं, परिजनों की चिंता और भी बढ़ गयी। इसे लेकर परिजनों ने बात करने की कोशिश की, लेकिन नेटवर्क प्रॉब्लम के कारण बात नहीं हो सकी।
मंगलवार की रात बारह बजे आयी थी तीन कॉल, पर नहीं हो सकी थी बात
आरा। पिता हृदयानंद सिंह रूंधते आवाज में कहते हैं कि चंदन की कंपनी से मंगलवार की रात करीब 12 बजे तीन कॉल आयी थी। लेकिन तब बात नहीं हो सकी थी। बुधवार की सुबह उसी नंबर पर कॉल की गयी, लेकिव कुछ क्लीयर नहीं हुआ। उसके बाद सेना में ही तैनात बड़े बेटे ने बात की। तब शहादत की खबर मिली। उसके बाद वाट्सएप से फोटो का भी मिलान किया। इस खबर के बाद तीनों भाई छुट्टी लेकर लद्दाख के लिये निकल गये हैं।
गांव के रास्ते को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे चंदन
आरा। भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर संघर्ष में शहादत देने वाले चंदन गांव के रास्ते को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे। उनके दोस्त व परिवार के लोग बताते है कि चंदन जब उनके बीच बैठते थे, तो गांव व समाज के बारे में चिंतिंत रहते थे। गांव के रास्ता को लेकर अक्सर चर्चा करते थे कि गांव का रास्ता टूट गया है, कैसे बनेगा? परिवार के लोग बताते हैं कि इसे लेकर वह स्थानीय प्रतिनिधियों से भी मिले थे। आश्वासन भी मिला था कि पैसा विभाग से पास हो गया है पर अभी तक रास्ता बना नहीं है।
सेना में जाने के लिए युवाओं को लिए हमेशा प्रेरित करते थे चंदन
आरा। चंदन की व्यवहार कुशलता के लोग कायल हैं। गांव आने पर युवाओं से खास तौर पर मिलते थे। कहा करते थे कि दौड़ते रहें, सेना में नौकरी जरूर मिल जायेगी। इसको लेकर वह अपने परिवार का भी उदाहरण देते थे।
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