Saturday, February 22, 2025
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पूज्य संत जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा की धर्म के दस लक्षण को जाने

शाहपुर प्रखंड के करजा गांव में प्रवचन करते हुए जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि मानव जीवन में गृहस्थ आश्रम महत्वपूर्ण है। यह आश्रम गृहस्थ को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ फल प्राप्त कराता है।

Jeeyar Swami – Karja: शाहपुर प्रखंड के करजा गांव में प्रवचन करते हुए जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि मानव जीवन में गृहस्थ आश्रम महत्वपूर्ण है। यह आश्रम गृहस्थ को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ फल प्राप्त कराता है।

  • हाइलाइट : Jeeyar Swami – Karja
    • मानव जीवन में गृहस्थ आश्रम सर्वश्रेष्ठ : जीयर स्वामी
    • गृहस्थ आश्रम में पुत्र की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा
    • चार भाई हैं और एक भाई को भी संतान है तो अन्य तीनों भाई भी पुत्र के अधिकारी हो जाते हैं

आरा: शाहपुर प्रखंड के करजा गांव में प्रवचन करते हुए जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि मानव जीवन में गृहस्थ आश्रम महत्वपूर्ण है। यह आश्रम गृहस्थ को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ फल प्राप्त कराता है। गृहस्थ जीवन में रहकर भी भगवान का सान्निध्य सुगमतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। जो गृहस्थ अपने को परमात्मा से जोड़ना चाहता है, उसे शास्त्र वर्जित आहार-व्यवहार नहीं अपनाना चाहिए।

जिस गृहस्थ के घर में छह प्रकार के सुख नहीं हैं, वह गृहस्थ कहलाने का अधिकारी नहीं है। गृहस्थ आश्रम से भिन्न ब्रह्मचर्य और संन्यास आश्रम का पालन करना कठिन है। कहा कि रोग मुक्त जीवन होना चाहिए। स्त्री सिर्फ रूप-रंग से नहीं बल्कि आचरण और वाणी से भी सुन्दर होनी चाहिए। पुत्र आज्ञाकारी होना चाहिए। अर्थ का उपार्जन वाली शिक्षा अध्ययन होना चाहिए।

Pintu bhaiya
Pintu bhaiya

स्वामी जी ने कहा कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए अगर ये सुख उपलब्ध नहीं हैं तो अपने को सच्चा गृहस्थ नहीं मानें। गृहस्थ आश्रम में पुत्र की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि अगर चार भाई हैं और एक भाई को भी संतान है तो अन्य तीनों भाई भी पुत्र के अधिकारी हो जाते हैं।

स्वामी जी ने कहा कि धर्म के दस लक्षण हैं- धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, स्वच्छता, इन्द्रियों को वश में रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध । स्वच्छता की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि स्वच्छता का तात्पर्य बाहरी और भीतरी स्वच्छता से है। भगवान बार-बार कहते हैं कि जिसका मन निर्मल रहता है उसे ही मैं अंगीकार करता हूं। निरमल मन जन सो मोहि पावा मोहि कपट छल छिद्र न नावा।।

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