Sunday, October 6, 2024
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भोजपुर का प्रसिद्ध शिव मंदिर, कुंड से निकले रक्त रंजित शिवलिंग की कहानी

कुंडेश्वर शिव मंदिर (कुड़वा शिव) भोजपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर पश्चिम आरा-बक्सर मुख्य मार्ग एन.एच. 922 से बिल्कुल सटे बिलौटी एवं शाहपुर के बीचो बीच अवस्थित है।

  • Kundwa Shiva Temple Shahpur: हाइलाइट
    • मंदिर निर्माण की है एक ऐतिहासिक घटना
    • कलाकृतियों से होती मंदिर निर्माण का अनुमान

Kundwa Shiva Temple Shahpur आरा/शाहपुर: प्रखंड मुख्यालय से लगभग दो किलोमीटर पूर्व NH-922 से सटे प्राचीन कुंडवा शिव मंदिर की सुंदरता की प्रसिद्धि व महात्म्य न केवल जिले की विरासत के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इन्हें दूर दूर से पर्यटक भी देखने के लिए अधिक उत्सुक होते हैं। प्राचीन शिव मंदिरों में से एक यह शिव मंदिर महत्वपूर्ण मान्यताओं में से एक है। यह शिव मंदिर अपने बौद्धिक और धार्मिक विवेचन के लिए प्रसिद्ध है, जिसे देखकर पूर्वजों की महानता और उनकी विद्वत्ता का एहसास होता है।

रक्त रंजित शिवलिंग की स्थापना व् मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक घटना

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किदवंतियों व शिक्षावान लोगों के अनुसार के अनुसार राजा वाणासुर इसी स्थान पर आकर गंगा नदी के किनारे तपस्या करता था। कुछ वर्षो की तपस्या के उपरांत उसने यहां महायज्ञ करने की ठानी। यज्ञ के लिए हवन कुंड की खुदाई होने लगी। इसी खुदाई के दौरान श्रमिकों का फावड़ा किसी पत्थर से टकराई तथा उससे रक्त बहने लगा। इसकी सूचना राजा वाणासुर को दी गयी। रक्त रंजित पत्थर को निकालकर बाहर रखा गया जो शिवलिंग की आकृति का था।

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कहा जाता है कि रात्रि पहर भगवान शिव ने राजा वाणासुर के स्वप्न में आकर आदेश दिये कि रक्त रंजित शिवलिंग की वह स्थापना करे। राजा वाणासुर के द्वारा भगवान शिव के आदेश पर इसे स्थापित किया गया। चूंकि यह शिवलिंग हवन कुंड की खुदाई के दौरान प्राप्त हुआ था इसलिए इनकी प्रसिद्धि कुंडवा शिव (कुंडेश्वर शिव) के नाम से हुई।

कलाकृतियों से मंदिर निर्माण का अनुमान

प्राचीन कुंडवा शिव मंदिर का स्थल समृद्ध इतिहास और संस्कृति से भरा हुआ है। इस मंदिर के निर्माण से जुड़े कोई लिखित प्रमाण तो नहीं हे। लेकिन स्थानीय लोक गाथाओं, किदवंतियों, मंदिर की बनावट एवं यहां स्थापित कलाकृतियों से यह अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर महाभारत कालीन राजाओं के द्वारा बनवाया गया होगा।

किदवंतियों व आस पास के कई प्रमुख और शिक्षावान लोगों के अनुसार, राजा वाणासुर ने केवल शिवलिंग स्थापित किया था। उस समय पवित्र गंगा नदी की मुख्यधारा यही से गुजरती थी। इसका प्रमाण छठवी शताब्दी के आसपास महाकवि वाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित में भी मिलता है।

वही महाभारत काल में वनवास के समय पांडु पुत्र अपनी माता कुंती के साथ गंगा नदी के किनारे स्थित इस शिवलिंग की पूजा अर्चना के बाद मंदिर निर्माण की बातें भी कही जाती है। मंदिर की ऊंचाई और विभिन्न स्थापत्य कला के शैलियों में विविधता को देखकर पूर्व के विद्वत्ता का एहसास होता है।

क्या है मंदिर की विशिष्टता

इस मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर खुलता है। बिना ईट के प्रयोग किये वृहद शिलाखंडों से निर्मित इस मंदिर के दीवारों पर उकेरी गयी कलाकृतियां तत्कालीन शिल्पकारों के कला कौशल को दर्शाता है। ठीक इसी प्रकार की बनावट वाली पार्वती एवं एक अन्य मंदिर है जो पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण एवं वर्तमान में धरोहर है। इस मंदिर की सुंदरता मन को आकर्षित करती है और हमें भारतीय संस्कृति की महानता को समझने की प्रेरणा देती है।

महाशिवरात्रि के दिन यहां लगता है मेला

धार्मिक आस्था का केन्द्र कुंडेश्वर शिव (कुड़वा शिव) पुरातात्विक व ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण मंदिर है। प्रत्येक वर्ष सावन और फागुन महीने की महाशिवरात्रि के दिन यहां मेला लगता है। जिसे सरकार द्वारा बंदोबस्त भी किया जाता है। बिना ईट के बने इस शिव मंदिर की बनावट व शिल्पकारी देखकर तत्कालीन शिल्पकारों के अद्वितीय कला कौशल विद्वत्ता इसे पुरातन मंदिरों की श्रेणी में खड़ा करता है।

कहां अवस्थित है यह प्राचीन मंदिर

कुंडेश्वर शिव मंदिर (कुड़वा शिव) भोजपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर पश्चिम आरा-बक्सर मुख्य मार्ग एन.एच. 922 से बिल्कुल सटे बिलौटी एवं शाहपुर के बीचोबीच अवस्थित है। मंदिर से शाहपुर प्रखंड मुख्यालय की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है।

शिवलिंग शृंगार की मनमोहक तस्वीर

प्राचीन कुंडवा शिव मंदिर जहां हर साल लाखों शिव भक्त इच्छाएं पूरी करने आते हैं। नव निर्मित ट्रस्ट द्वारा मंदिर में नित्य पूजा और अभिषेक की व्यवस्था है, जिससे इसे एक गुणवत्ता संदर्भ में अद्वितीय बनाया गया है। शिवलिंग शृंगार की हर रोज मनमोहक तस्वीर देखकर मन प्रशंसापूर्ण हो जाता है।

वर्तमान समय में मंदिर की स्थिति

वर्तमान में मंदिर का अवशेष एक आयताकार झाड़ीनुमा ऊंचे टीले पर अवस्थित है। जिसका क्षेत्रफल लगभग पांच एकड़ में फैला है। टीले के बीचो बीच उत्तर तरफ प्रधान प्राचीन शिव मंदिर निर्मित है। सतह पर मंदिर की स्थिति लगभग 30 फीट लंबी ,10 फीट चौड़ी तथा 30 फीट ऊंचे गुंबज वाले इस मंदिर का द्वार पश्चिम की ओर खुलता है। गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग गोलाकार लंबा न होकर चपटा है। यह हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे हमें सुरक्षित रखना चाहिए।

RAVI KUMAR
RAVI KUMAR
बिहार के आरा (शाहपुर ) निवासी रवि कुमार एक भारतीय पत्रकार है एवं न्यूज पोर्टल के प्रमुख लोगों में से एक है।
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