Sunday, February 23, 2025
No menu items!
HomeNewsरास्ट्रीय खबरेंसुप्रीम कोर्ट: डेडिकेटेड कमिशन की वैधता पर बिहार सरकार को मिला दो...

सुप्रीम कोर्ट: डेडिकेटेड कमिशन की वैधता पर बिहार सरकार को मिला दो हफ्ते का समय

SupremeCourt – Hearing on Dedicated Commission: बिहार में हाल ही में संपन्न हुए शहरी निकाय चुनावों की वैधता पर सस्पेंस बरकरार है। नगरपालिका चुनावों के आरक्षण रोस्टर को तय करने के लिए बनाए गए अति पिछड़ा वर्ग आयोग कमिशन और उसकी रिपोर्ट की वैधानिकता पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। इस मसले पर अपना पक्ष रखने के लिए बिहार सरकार ने दो हफ्ते का समय और मांगा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय दिये जाने के बाद अब इस मसले पर दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी।

विदित रहें की बिहार के 224 नगर निकायों में 18 दिसंबर और 28 दिसंबर को दो चरणों में चुनाव संपन्न हुए हैं। जिस का रिजल्ट 20 और 30 जनवरी को आ गया था। इसके बाद 13 जनवरी को शेखपुरा को छोड़ सभी नवनिर्वाचित नगर निकायों के वार्ड पार्षद, मेयर-डिप्टी मेयर और मुख्य पार्षद व उप मुख्य पार्षद ने शपथ भी ग्रहण भी कर लिया है। लेकिन चुनाव की वैधता अभी भी सवालों के घेरे में है। इससे संबंधित मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसमें सरकार की ओर से गठित अति पिछड़ा वर्ग आयोग की योग्यता पर फैसला होना है। SupremeCourt – Hearing on Dedicated Commission: क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर के अपने आदेश में बिहार के नगर निकायों में आरक्षण रोस्टर तैयार करने के लिए सरकार द्वारा गठित EBC कमिशन को डेडिकेटिड कमिशन नहीं माना था और बिहार सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए चार हफ्ते का समय देते हुए मामले की सुनवाई की तिथि 20 जनवरी को तय किया गया था। लिहाज़ा शुक्रवार को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई मगर बिहार सरकार ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय और मांगा। जिस पर कोर्ट ने सरकार को दो हफ्ते का समय और दिया है।

बता दें कि स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण दिये जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में फैसला सुनाया था कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. सुप्रीम कोर्ट ने जो ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला बताया था उसमें उस राज्य में ओबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग की सिफारिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने को कहा था. इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि एससी, एसटी, ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल सीटों का 50% की सीमा से ज्यादा नहीं हो.

Pintu bhaiya
Pintu bhaiya

मालूम हो कि पटना हाईकोर्ट के पूर्व में दिए एक आदेश के अनुसार जब तक बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर लेती तब तक अति पिछडों के लिए आरक्षित सीट सामान्य माने जायेंग। राज्य निर्वाचन आयोग अति पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य घोषित कर चुनावी प्रक्रिया को फिर से शुरू कर सकता है। लेकिन अति पिछ़ड़ों को आरक्षण देने से पहले हर हाल मे ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया पूरी करनी होगी।

इसके बाद बिहार सरकार की तरफ से अति पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया , सर्वे कर आयोग ने अपनी रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंप दी। लेकिन इससे पहले ही इस आयोग की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। जिस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा गठित अति पिछड़ा वर्ग आयोग को डेडिकेटेड कमिशन मानने से इनकार कर दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी बिहार सरकार द्वारा उसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर राज्य निर्वाचन आयोग को चुनाव कराने की अनुशंसा कर दी गयी । और बिहार सरकार की अनुशंसा मिलते ही राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा नगरपालिका चुनाव की नई तिथि की घोषणा कर चुनाव करा लिए गए। आयोग की रिपोर्ट के बाद केवल चुनाव के डेट में बदलाव किया गया सभी निकायों में आरक्षण का रोस्टर पूर्ववत रखा गया। विधि विशेषज्ञों की माने तो पटना हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद बिहार सरकार द्वारा निकाय चुनावों के आरक्षण रोस्टर तैयार करने में ट्रिपल टेस्ट की केवल खानापूर्ति की गयी।

- Advertisment -
Khabre Apki - YouTube -
Khabre Apki - YouTube

Most Popular