भिक्षाटन कर मनाया जाता है रामनवमी-हीरालाल ओझा
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बिहार आरा/शाहपुर:- देश के प्रखर प्रहरी रहे अब समाजसेवी सह राजद नेता हीरा ओझा ने कहा कि संभव है कोरोना के कहर से तो मुझे क्वारंटाइन बचा ले, परंतु मैं बिना परमात्मा की कृपा के विक्षिप्त होने से नही बच पाऊँगा। आज महा अष्टमी है कल राम नवमी है। हमारी कुल परम्परा के अनुसार वर्ष में एक बार हमलोग भिक्षाटन के लिए अवश्य निकलते हैं एवं भीख में मिले अन्न धन से ही पूजा की सामग्री क्रय कर के लाते है, और उसी से योगमाया की पूजा करते है राम नवमी के लिए पुरिया पकाते है। मन कही सुदूर निकल जाता है करोड़ो लोगो की जिंदगी में तरह-तरह से घुला मिला मन की चेतन-अचेतन परतों पर जगमग सुलेख सा शांत समाया हुआ शब्द “राम ” कोई कोरा शब्द भर नही है, वरन वह अपने देश की आसमुंद्र फैली चेतना का सुगंधित सुवासित सामगान है।
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“अगुन अलेप अमान एक रस “
राम सगुन भये भगत प्रेम वश
राम ने स्वयं कोई ग्रन्थ नही लिखा सिर्फ जीवन को सलीके के साथ जीने की एक शैली दी है। महाभारत एवं रामायण युगांतरकारी क्रान्त दृष्टियाँ है “कृष्ण” विश्लेषणात्मक हैं तो “राम” समन्वयात्मक मेरी बोधगम्यता, मेरी व्यक्तिगत मनीषा “सितानिर्वासन” एवं उसकी उपादेयता पर हर समय संशयान्वित रहती है। और इसकी सम्यक समीक्षा करने के लिए ही मैं वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत, कंबन, कृतिवास, एवं तोखे रामायण का अध्यन किया है। इनका तार्किक विश्लेषण तो मैं और कभी लिपिवद्ध करूँगा लेकिन माता “सीता” का वह शब्द संदेश मुझे और उलझन में डाल देता है जब वे पुरे अयोध्यावासियों के समक्ष माँ भगवती माधवी देवी से यह प्रार्थना करती हुई उनकी शरणागत होकर कहती हैं- हे माँ ! मेरा कुछ भी पुण्य संचित हो यदि मैंने स्वप्न में भी श्रीराम के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष का चिंतन न किया हो तो मुझे अपनी गोद मे जगह दो और आशीष दो कि युग-युग में मुझे राम ही पत्नी रूप में वरण करें।
मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि जिस प्रकार प्रशांतपयोधि से उसकी स्निग्धता एवं शीतलता तिरोहित नही हो सकती जिस प्रकार अग्नि से उसकी दाहकता अलग नही हो सकती उसी प्रकार “श्रीराम” से “सीता” का एक पल के लिए भी अलग होना मुझे सुहाता नही है और यह सम्भव भी नही है। मैं इसी उधेड बुन में पड़ा हूँ तब हर्षित आते ही चहकते हैं बाबा आप यह क्या उलूल जूलूल सोचते रहते हो और लिखते रहते हो। चलिये मुझे पत्ता चला है कि अमीरा नट का परिवार एवं उनकी (वृद्धा विधवा) काफी कष्ट में है तथा दुधघाट, गोसाईपुर, शाहपुर के कई महादलित परिवार राम नवमी मनाने की स्थिति में नही है—— हम बाहर निकलते है तो गोविंदा, सौरभ, पुटु, आलोक यादव, सुनील, दीपक यादव, मनीष आदि कुछ नव युवक साथ होकर उन नीड़ों की तरफ चल देते हैं जो निराश्रित है।
नीति प्रीति परमारथ स्वारथ
कोऊ न राम सम जान यथारथ