Sardar Ranjit Singh Yadav:1857 की क्रांति का वीर योद्धा सरदार रणजीत सिंह यादव
बिहार/आरा खबरे आपकी भारत की आजादी में बिहार के अनेकों वीरों और वीरांगनाओं का अहम योगदान था। आज़ाद भारत के सपने को साकार करने के लिए उन वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों का परवाह किये बिना अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया था। अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति (Revolution of 1857) में इन्हीं वीर योद्धाओ में से एक थे सरदार रणजीत सिंह यादव जिन्होंने 80 साल के वीर योद्धा बाबू कुंवर सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजों को इतना खौफजदा कर दिया की अंग्रेजों की हिम्मत नहीं पड़ी की वो शाहाबाद के लोगों एवं यादवों से कर वसूल कर सकें।
वीर योद्धा बाबू कुंवर सिंह ने अपनी आयु और ढलते शरीर की परवाह किये बगैर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का जो बिगुल फूंका, इसकी कमान उन्होंने अपने सबसे विश्वसनीय सहयोगी सरदार रणजीत सिंह यादव के हाथ में सौंपी थी। आज़ाद भारत में जब भी बिहार के इतिहास की बात होती है तो वीर कुंवर सिंह का नाम और इनकी शौर्यगाथा सवर्ण अक्षरों में अंकित दिखाई देती है, वही कई सुरवीर आज भी गुमनाम है और उन्ही गुमनाम में एक है सरदार रणजीत सिंह यादव जिनसे अंग्रेज काफी भयभीत थें।
Sardar Ranjit Singh Yadav:1857 के शेर सरदार रणजीत सिंह यादव का जीवन परिचय
भोजपुर जिला के जगदीशपुर अनुमंडल अंतर्गत शाहपुर के जागीर खानदान में जन्मे रणजीत सिंह यादव मूलत: कृष्णौत शाखा के यदुवंशी थे। इनके पूर्वज जो परमार राजाओं के विश्वसनीय सरदार थे इस वजह से सरदार रणजीत सिंह यादव जमींदार कुंवर सिंह के काफी करीबी मित्रों में से एक थे। भारतमाता को गुलामी की ज़ंजीरों से मुक्त कराने के लिए जब कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल फूंका तब 1857 की महाक्रांति (Revolution of 1857) में शाहपुर के इस सुरवीर को अहम जिम्मेदारी दी गयी थी।
जगदीशपुर किले से काफी दूर चारों तरफ से की गयी घेराबंदी में एक मोर्चा चौगाई डिवीजन जिसकी कमान सँभालते सरदार रंजीत सिंह यादव ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिया और क्रांति की मशाल को बिहार में आगे बढ़ाया। 1857-58 के मध्य वीर योद्धा रणजीत सिंह यादव और अंग्रेजों के बीच कई बार युद्ध हुए। अंग्रेज इनसे काफी खौफजदा थें और आखिरकार वीर योद्धा रणजीत सिंह यादव और इनके अहीर वीरों को अंग्रेजों ने छल से हरा बंदी बनाकर कालापानी भेज दिया। अंग्रेज इतने खौफजदा थे की सरदार रणजीत सिंह यादव के परिजनों को भूमिगत रहना पड़ा। संपत्ति को तहस नहस कर दिया गया।