Friday, June 6, 2025
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क्या विकास की किरण शाहपुर के धमवल गांव तक पहुंच पाएगी ?

धमवल गांव में सड़क का सपना तीन पीढ़ियों से अधूरा, प्रसव पीड़ा में खाट ही सहारा

Dhamwal Road: मीडिया कर्मी के पहुंचते ही फूटा धमवल गांव का दर्द, ग्रामीणों ने कहा – “सड़क नहीं, तो कुछ नहीं, विधायक तो आते भी नहीं”

  • हाइलाइट्स: Dhamwal Road
    • धमवल गांव में सड़क का सपना तीन पीढ़ियों से अधूरा, प्रसव पीड़ा में खाट ही सहारा

Dhamwal Road आरा,बिहार। विकास के सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच की खाई कितनी गहरी है, इसका जीवंत उदाहरण भोजपुर जिले के शाहपुर विधानसभा क्षेत्र का धमवल गांव है। दशकों से विकास की मुख्यधारा से कटे इस गांव में जब मीडिया कर्मी बाल्मीकि पांडेय के आने की सूचना मिली, तो मानो लोगों के सब्र का बांध टूट गया। अपनी समस्याओं की लंबी फेहरिस्त लिए ग्रामीण इकट्ठा हो गए, इस उम्मीद में कि शायद अब उनकी आवाज सही कानों तक पहुंच सके।

शाहपुर विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत बहोरनपुर पंचायत का धमवल गांव आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है। एक युवा ने बताया की मेरे दादा की उम्र 90 साल हो गई है अभी तक उन्होंने रोड नहीं देखा। हमारी उम्र 25 26 साल हो गई हम भी नहीं देख पाए। आलम यह है कि गांव की तीन पीढ़ियों ने अब तक अपने गांव तक पहुंचने के लिए एक पक्की सड़क नहीं देखी है।

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सड़क के अभाव में ग्रामीणों का जीवन, विशेषकर आपातकालीन स्थितियों में, अत्यंत कष्टदायक हो जाता है। सबसे अधिक पीड़ा गर्भवती महिलाओं को झेलनी पड़ती है, जिन्हें प्रसव के लिए आज भी खाट पर लादकर कई किलोमीटर दूर अस्पताल ले जाना पड़ता है। इस गंभीर समस्या को लेकर स्थानीय निवासियों में सरकार,प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के प्रति गहरा आक्रोश व्याप्त है।

धमवल गांव की यह सड़क विहीन नियति दशकों पुरानी है। ग्रामीणों का कहना है कि हर चुनाव में नेता आते हैं, सड़क बनवाने का वादा करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई सुध लेने नहीं आता। गांव तक पहुंचने का कोई सुगम मार्ग न होने के कारण रोजमर्रा के काम भी प्रभावित होते हैं। किसी भी प्रकार के वाहन का गांव तक पहुंचना असंभव है।

इस मुद्दे ने कई बार तूल भी पकड़ा है। स्थानीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं और ग्रामीणों ने सड़क नहीं तो वोट नहीं का नारा भी बुलंद किया है। कुछ समय पूर्व, स्थानीय ग्रामीणों को ये आश्वासन दिया गया था की सड़क निर्माण में अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) को लेकर कुछ तकनीकी बाधाएं हैं, जिन्हें दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, ग्रामीणों के लिए ये आश्वासन अब खोखले साबित हो रहे हैं।

सड़क, जो किसी भी क्षेत्र के विकास का पहला पैमाना मानी जाती है, उसी के लिए तरसते धमवल गांव के लोग व्यवस्था की उदासीनता का दंश झेलने को मजबूर हैं। प्रसव पीड़ा के दौरान एक महिला को खाट पर ले जाए जाने का दृश्य, विकास के तमाम दावों पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है और स्थानीय प्रशासन व सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है। ग्रामीणों की आंखें अब भी उस दिन का इंतजार कर रही हैं, जब उनके गांव की पगडंडियां पक्की सड़कों में तब्दील होंगी और विकास की किरण उन तक भी पहुंच पाएगी।

अपनी समस्याओं की लंबी फेहरिस्त लिए इकट्ठा धमवल गांव के अक्षय पासवान, देव लोक राम, नौलाक पासवान, रतन पासवान, संजय पासवान, लाल जी राम, छोटक राम, वीरदा पासवान, दरोगा पासवान, धनजी राम सहित अन्य लोगों से उनकी क्या समस्याएं है जानने का प्रयास किया पत्रकार बाल्मीकि पांडेय ने।

Dhamwal Road: सड़क बनी सबसे बड़ी पीड़ा:-

जैसे ही बातचीत शुरू हुई, ग्रामीणों ने एक स्वर में अपनी सबसे बड़ी और बुनियादी समस्या बताई – सड़क। लोगों ने स्पष्ट कहा कि उनके लिए मुख्य समस्या सड़क ही है। सड़क के बिना जीवन कितना नारकीय हो सकता है, यह धमवल के हर चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता था। ग्रामीणों ने बताया कि सड़क न होने के कारण न तो गांव में कोई वाहन आ सकता है और न ही यहां से कोई आसानी से बाहर जा सकता है। आपातकालीन स्थिति, खासकर प्रसव पीड़ा के दौरान, स्थिति भयावह हो जाती है जब मरीजों को खाट पर लादकर ले जाना पड़ता है।

शिक्षा और स्वास्थ्य भी बदहाल:-

ग्रामीणों ने समस्याओं की प्राथमिकता तय करते हुए कहा, “मुख्य समस्या सड़क है, उसके बाद शिक्षा और स्वास्थ्य।” सड़क के अभाव ने इन दोनों महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भी पंगु बना दिया है। सड़क न होने के कारण शिक्षक गांव के स्कूल में आने से कतराते हैं और बच्चों, विशेषकर बच्चियों, को आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बाहर भेजना एक बड़ी चुनौती है। इसी तरह, स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल भी बेहाल है। मामूली बीमारी में भी लोगों को पैदल चलकर या जुगाड़ के सहारे मुख्य सड़क तक पहुंचना पड़ता है।

वर्तमान विधायक के प्रति गहरा आक्रोश:-

बातचीत के दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधियों, विशेषकर वर्तमान विधायक के प्रति लोगों का गुस्सा साफ नजर आया। ग्रामीणों ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, “विधायक तो यहां आते ही नहीं हैं, वो हमारी समस्याएं क्या सुनेंगे।” यह कथन इस बात को दर्शाता है कि जनता और उनके चुने हुए प्रतिनिधि के बीच संवाद की एक बड़ी खाई है। लोगों में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश था कि चुनाव के समय तो वादे कर दिए जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है।

मीडिया कर्मी बाल्मीकि पांडेय का आगमन धमवल गांव के लोगों के लिए एक अवसर बन गया, जहां उन्होंने व्यवस्था की उदासीनता और जनप्रतिनिधियों की अनदेखी पर अपना गुस्सा और अपनी पीड़ा खुलकर व्यक्त की। धमवल गांव के लोग अब सिर्फ आश्वासनों का झुनझुना नहीं, बल्कि अपनी बुनियादी समस्याओं का ठोस समाधान चाहते हैं।

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