बिहार के शास्त्रीय संगीत में बाबू ललन जी के योगदान विषय पर ऑनलाइन वार्ता कार्यक्रम का हुआ आयोजन
आरा। शहर के शीशमहल चौक स्थित शत्रुंजय संगीत विद्यालय ( जमीरा कोठी) के द्वारा आरा के प्रसिद्घ पखावज सम्राट संगीत शिरोमणि शत्रुंजय प्रसाद सिंह उर्फ बाबू ललन जी की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर बिहार के शास्त्रीय संगीत में बाबू ललन जी का योगदान विषय पर ऑनलाइन वार्ता कार्यक्रम किया गया।
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इस वार्ता के मुख्य वक्ता नई दिल्ली के पंडित विजय शंकर मिश्र ने कहा कि बाबू ललन जी एक महान संगीतद्वारक थे। बाबू ललन जी की कला कौशलता अद्भुत थी। 1940 के दशक में भारत का सबसे बड़ा संगीत सम्मेलन आरा में हुआ। आरा का नाम राष्ट्रीय मानचित्र पर बाबू ललन जी की बदौलत अंकित हुआ।
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संगीत एवं नाट्य विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) लावण्य कीर्ति सिंह काव्या ने कहा कि बाबू ललन जी बिहार के शास्त्रीय संगीत जगत के महान शख्शियत थे। ललन जी के नाम से पुरस्कार की घोषणा होनी चाहीय। समाज ने नहीं किया बाबू ललन जी के सांगीतिक कार्यो को उजागर।
इटावा के चौधरी चरण सिंह महाविद्यालय के तबला के प्रोफेसर लाल बाबू निराला ने कहा कि बाबू ललन जी के सांगीतिक कार्यो की बदौलत आरा को संगीतज्ञों का तीर्थ और छोटकी बनारस जैसे नाम दिए गए।
संचालन करते हुए सुविख्यात कथक नर्तक बक्शी विकास ने कहा कि आज की पीढी का ललन जी से परिचित न होना दुखद है। ललन जी के प्रति सरकार और समाज का रवैया उदासीन रहा। इस शहर में शास्त्रीय संगीत और ललन जी के कार्यो की उपेक्षा क़े कारण अश्लील भोजपुरी संगीत फैला।
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इसके बाद विदुषी बिमला देवी ने राग मियां मल्हार में छोटा ख्याल ” बोले रे पपीहरा अब घन गरजे ” झूला गायन “झूला झूले नंदलाल संग राधा गुजरी” ठुमरी व दादरा प्रस्तुत कर समां बांधा। संचालन बक्शी विकास व धन्यवाद ज्ञापन नीरजा सिंह ने किया।